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Assembly Elections: ईस सीट पर सपा का आज तक नहीं खुला खाता, कभी ददुआ-ठोकिया जैसे डकैत बनते रहे हैं विधायक

Assembly Elections: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की गर्मी कड़ाके की ठंड पर भारी पड़ रही है. बयान वीरों के तीखे हमलों से राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ी हुई है. सत्तापक्ष-विपक्ष अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यूपी में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच टक्कर देखने को मिलेगी.

इन सबके बीच हम फ्लैशबैक में आपके सामने यूपी में एक ऐसी विधानसभा सीट की कहानी लेकर आ रहे हैं, जहा अरसे से मुलायम की सरकार समाजवादी पार्टी आज तक अपना खाता ही नहीं खोल पाई है.

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राजधानी लखनऊ से यह विधानसभा क्षेत्र 227 किलोमीटर दूर है. दिलचस्प है कि यह इलाका कभी डकतौं के आतंक की वजह से सुर्खियों में रहा. इसे डकैतों का गढ़ भी कहा जाने लगा था. माना जाता है कि इसी वजह है यहां आज भी विकास की गंगा नहीं बह पाई है. लोगों के पास मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. जी हां, हम बात कर रहे हैं… मानिकपुर विधानसभा सीट की.

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कभी ददुआ से लेकर ठोकिया तक यहां के जंगलों में रहे है

डाकू गया प्रसाद से लेकर साढ़े सात लाख का इनामी दस्यु सरगना शिव कुमार उर्फ ददुआ, अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया जैसे दुर्दांत डकैत मानिकपुर के जंगलों में रहा करते थे और यहीं से अपराध की दुनिया में सक्रिय बने रहे. बताते हैं कि 1965 में डाकू गया प्रसाद ने यहां के जंगलों में शरण ली थी लेकिन उसने कभी राजनीति में कदम नहीं रखा. इसके बाद 1980 से गया प्रसाद के शिष्य दस्यु सम्राट ददुआ ने विरासत संभाली.

ददुआ ने जुर्म की दुनिया में गजब की दहशत फैलाई. इतना कि उसके इशारे पर यहां जन प्रतिनिधि चुने जाने लगे. उसने अपने भाई और बेटे को भी जन प्रतिनिधि बनवाया. ददुआ के खात्मे के बाद ठोकिया, बलखड़िया, बबली कोल और गौरी यादव जैसे डकैत भी इसी राह पर चले। इन सबके खात्मे के बाद यह इलाका अब डकैतों के आतंक से मुक्त हो चुका है.

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2007 तक अनुसूचित जाति, जनजाति के लिए आरक्षित रही यह सीट मानिकपुर विधानसभा सीट पहले चुनाव से लेकर 2007 तक अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित रही. 1952 में कांग्रेस के दर्शन राम इस सीट से पहले विधायक बने.

1957, 1962 और 1969 में कांग्रेस की सिया दुलारी, 1967 में जनसंघ के इन्द्र पाल कोल, 1974 में भारतीय जनसंघ के लक्ष्मी प्रसाद वर्मा, 1977 में जनसंघ के रमेश चंद्र कुरील, 1980 और 1985 में कांग्रेस के शिरोमणि भाई यहां से विधायक चुने गए. मानिकपुर से 1989, 1993 में भाजपा के मन्नू लाल कुरील विधानसभा पहुंचे. 1996, 2002 और 2007 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के दद्दू प्रसाद विधायक निर्वाचित हुए.

2008 में परिसीमन हुआ जिससे यह सीट सामान्य हो गई

इसके बाद 2012 में बसपा के चंद्रभान सिंह यहां से जीते. 2017 में बीजेपी ने आरके पटेल को उम्मीदवार बनाया. चित्रकूट सदर विधानसभा सीट से बसपा के पूर्व विधायक आरके पटेल बीजेपी के टिकट पर मानिकपुर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे.

सपा का ग्राफ बढ़ता नजर आ रहा मानिकपुर विधानसभा क्षेत्र में करीब साढ़े तीन लाख मतदाता हैं. यह इलाका अनुसूचित जाति और जनजाति बाहुल्य है. आदिवासी समुदाय के कोल बिरादरी के मतदाताओं की संख्या अधिक है. ब्राह्मण, यादव, पटेल, पाल और निषाद बिरादरी के वोटर भी अहम भूमिका निभाते हैं. अब भले ही सपा प्रत्याशी यहां से आज तक नहीं जीत पाया हो, लेकिन इसबार सपा का ग्राफ उठता हुआ जरूर नजर आता है.

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