द भारत: Defamation Case: केरल के वायनाड से संसद सदस्य और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को ‘मोदी सरनेम’ मामले में पहले सूरत की अदालत ने दोषी मानते हुए 2 साल जेल की सजा सुनाई. इसके बाद अब उनकी संसद सदस्यता भी खत्म कर दी गई है. हालांकि, अदालत ने सजा सुनाने के बाद जमानत देते हुए फैसले के अमल पर 30 दिन तक की रोक लगा दी थी ताकि राहुल गांधी उसे ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकें. सवाल ये उठता है कि राहुल गांधी को किस कानून के तहत 2 साल जेल की सजा सुनाई गई और अब उनके पास क्या विकल्प उपलब्ध हैं?
Rahul Gandhi: राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म, ‘मोदी सरनेम’ केस में 2 साल की सजा के बाद एक और झटका
राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव 2019 से पहले कर्नाटक के कोलार में हुई एक जनसभा में 13 अप्रैल को टिप्पणी की थी, ‘सभी चोरों का उपनाम मोदी ही कैसे है?’ इसके बाद भाजपा नेता और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी. लंबी सुनवाई के बाद सूरत की अदालत ने उन्हें ‘मोदी उपनाम’ वाले सभी लोगों की भावनाएं आहत करने का दोषी पाया और 2 साल की सजा का फैसला सुनाया. उन पर 2019 से आपराधिक मानहानि का मुकदमा चल रहा था. क्या आप जानते हैं कि मानहानि के मुकदमे कितनी तरह के होते हैं और उनमें कितनी सजा या जुर्माना लगाया जाता है?
मानहानि क्या है, कौन दर्ज कराता है केस?
राहुल गांधी के मामले से पहले जावेद अख्त और कंगना रनौट मामले में भी आपने मानहानि के मुकदमे के बारे में सुना होगा. दरअसल, जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में कुछ ऐसा बोलता, लिखता या आरोप लगाता है, जिसका इरादा उसे किसी भी तरह का नुकसान पहुंचाना हो तो इसके खिलाफ दर्ज मामला मानहानि के दायरे में आता है. ऐसे में माना जाता है कि एक व्यक्ति सिर्फ बदनाम करने के उद्देश्य से दूसरे व्यक्ति के खिलाफ बोल, लिख या आरोप लगा रहा है. ऐसा तब किया जा सकता है, जब कोई व्यक्ति किसी मृत व्यक्ति पर आरोप लगा रहा हो. मृत व्यक्ति का परिजन या रिश्तेदार चाहे तो मानहानि का मुकदमा दर्ज करा सकता है.
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कितनी तरह के होते हैं मानहानि के केस?
मानहानि के मामले भी दो तरह के होते हैं. पहला, दीवानी मानहानि के मामले में दोषी व्यक्ति को आर्थिक दंड दिया जाता है. वहीं आपराधिक मानहानि के लिए जेल की सजा का भी प्रावधान है. मौजूदा मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी पाया गया था. आपराधिक मामले में दोषी पाए जजाने पर संसद की सदस्यता खत्म करने का प्रावधान है. इसलिए अब उनकी लोकसभा सदस्यता भी खत्म कर दी गई है. मानहानि का केस सिविल कोर्ट या हाईकोर्ट में दायर किया जा सकता है. क्रिमिनल मानहानि में सीआरपीसी की धारा-200 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत दर्ज कराई जाती है. इसमें सीधे थाने में केस दर्ज नहीं करा सकते हैं. वहीं, इसमें ज्यादा से ज्यादा 2 साल की जेल की सजा हो सकती है.
राहुल गांधी को कैसे मिली तुरंत जमानत?
अगर ऊपरी अदालत निचली अदालत के फैसले को निलंबित ना करे तो दोषी व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता है. कुछ मामलों में ऊपरी अदालत सजा तो सस्पेंड कर देती है, लेकिन दोषमुक्त नहीं करती है. ऐसी परिस्थिति में भी दोषी व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता है. राहुल गांधी को सजा सुनाने के तुरंत बाद जमानत दे दी गई. दरअसल, सजा सुनाने वाले कोर्ट को किसी भी मामले में दोषी को तीन साल से कम की सजा सुनाने पर तुरंत जमानत देने का अधिकार है.
क्या कहता है कानून, कैसे तय होती है मानहानि?
अब ये समझते हैं कि मानहानि को लेकर देश का कानून क्या कहता है? भारतीय दंड संहिता की धारा-499 और 500 में किसी भी व्यक्ति के सम्मान और प्रतिष्ठा को सुरक्षा देने का प्रावधान है. आईपीसी की धारा-499 में कहा गया है कि कब और किन हालातों में मानहानि का दावा किया जा सकता है. वहीं, आईपीसी की धारा-500 में दोषी पाए जाने पर दी जाने वाली सजा के बारे में जिक्र किया गया है. अगर किसी व्यक्ति के लिखने, बोलने या आरोप लगाने से दूसरे व्यक्ति के सम्मान की हानि हुई है, तो वह जितनी चाहे, उतनी मानहानि की राशि का दावा कर सकता है. कोर्ट की फीस ज्यादा से ज्यादा 1.50 लाख रुपये है.
अगर ऊपरी अदालत में हारे तो क्या?
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी अब सूरत की अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकते हैं. अगर ऊपर अदालत में उन्हें दोषमुक्त ठहराया जाता है तो उनकी संसद सदस्यता खत्म करने का फैसला भी खारिज हो जाएगा. ऊपरी अदालत अगर ये कह दे कि सीआरपीसी की धारा-389 के तहत उनकी सजा पर रोक लगाई जाती है.
इसके बाद अदालत उनकी दोषसिद्धि पर भी रोक लगा दे तो वह लोकसभा सांसद बने रह सकते हैं. लेकिन, अगर ऊपरी अदालत भी उनको दोषी मानते हुए सजा बरकरार रखती है तो राहुल गांधी को 2 साल जेल में रहना पड़ेगा. वहीं, जनप्रतिनिधि कानून 1951 की धारा-8(3) के तहत सजा पूरी करने के 6 साल बाद यानी कुल 8 साल तक वह चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. यही नहीं, इस दौरान उन्हें मतदान का भी अधिकार नहीं रहेगा.