प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 28 मई को संसद के नए भवन (New parliament building) का उद्घाटन किया. कांग्रेस समेत 19 विपक्षी पार्टियों ने नई संसद के उद्घाटन समारोह का बायकॉट करने का फैसला किया है. उनका कहना है कि इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जगह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों से होना चाहिए.
नए संसद भवन पर हो रही राजनीति से अलग कुछ ऐसे सवाल भी हैं जिनके जवाब सोशल मीडिया से लेकर गूगल तक पर खोजे जा रहे हैं. नई संसद कैसी दिखाई देगी, आख़िर इसकी ज़रूरत क्यों पड़ी, इसे किसने बनाया और अब क्या पुरानी संसद को तोड़ दिया जाएगा?
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नई संसद की ज़रूरत क्यों पड़ी?
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत नए संसद भवन का निर्माण किया गया है. इस पूरे प्रोजेक्ट पर 20 हजार करोड़ रुपये खर्च होने हैं. दरअसल, सेंट्रल विस्टा राजपथ के क़रीब दोनों तरफ़ के इलाक़े को कहते हैं जिसमें राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट के करीब प्रिंसेस पार्क का इलाक़ा भी शामिल है. सेंट्रल विस्टा के तहत राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, उपराष्ट्रपति का घर भी आता है.
संसद भवन (New parliament building) करीब 100 साल पुराना है. केंद्र सरकार का कहना है कि मौजूदा संसद भवन में सांसदों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है.
सीटों की कमी
मौजूदा वक्त में लोकसभा सीटों की संख्या 545 है. 1971 की जनगणना के आधार पर किए गए परिसीमन पर आधारित इन सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ है. सीटों की संख्या पर यह स्थिरता साल 2026 तक रहेगी, लेकिन उसके बाद सीटों में बढ़ोतरी की संभावना है. ऐसे में जो नए सांसद चुनकर आएंगे उनके लिए पर्याप्त स्थान नहीं होगा.
बुनियादी ढांचा
सरकार का कहना है कि आजादी से पहले जब संसद भवन का निर्माण किया जा रहा था तब सीवर लाइनों, एयर कंडीशनिंग, अग्निशमन, सीसीटीवी, ऑडियो वीडियो सिस्टम जैसी चीज़ों का खासा ध्यान नहीं रखा गया था. बदलते समय के साथ संसद भवन में इन्हें जोड़ा तो गया लेकिन उससे भवन में सीलन जैसी दिक्कतें पैदा हुई हैं और आग लगने का ख़तरा बढ़ा है.
सुरक्षा
करीब 100 साल पहले जब संसद भवन का निर्माण हुआ था, उस वक्त दिल्ली भूकंपीय क्षेत्र-2 में थी लेकिन अब यह चार में पहुंच गई है. सांसदों के अलावा सैकड़ों की संख्या में ऐसे कर्मचारी हैं जो संसद में काम करते हैं. लगातार बढ़ते दबाव के चलते संसद भवन में काफी भीड़ हो गई है.