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Lok Sabha Election: बिहार में ‘जाति की पटरी’ पर सरपट दौड़ रही सियासत की रेलगाड़ी, जाने बेरोजगारी और महंगाई किस चिड़िया का नाम हैं

देखिए इस बार के लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha Election ) में एक मुद्दा मोदी हैं. दूसरा मुद्दा कौन सा कैंडिडेट खड़ा है. हमारी जाति का है कि नहीं. यदि है, तो उसे ही सपोर्ट करेंगे. दूसरी बात कि यदि पसंद का नहीं हुआ, सीधे तौर पर मोदी को देखकर वोट कर देंगे. ये बात राजधानी पटना के आशियाना मोड़ में सब्जी खरीदने वाले श्याम सुंदर की हैं.

उन्होंने कहा कि बिहार में कोई भी चुनावी ((Lok Sabha Election ) मुद्दा जाति से ऊपर नहीं उठ सकता है. बिहार के वोटरों के मन में सिर्फ महंगाई और बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है. बात जब वोट की आती है, तो उस मुद्दे को जाति अधिग्रहण कर ले जाती है. बिहार में, जहां यादव, मुस्लिम और दलितों का एक वर्ग मूल्य वृद्धि के लिए मोदी-नीतीश गठबंधन को दोषी ठहराता है. उच्च जाति के मतदाता और ओबीसी के बीच मोदी समर्थक केंद्र सरकार और नीतीश का बचाव करते हैं.


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वोटरों की राय

नरेंद्र मोदी समर्थकों का मानना है कि सरकार सभी को नौकरी नहीं दे सकती. केंद्र सरकार जनसंख्या विस्फोट के कारण होने वाली मूल्य वृद्धि से लेकर बांग्लादेशी घुसपैठ तक को मुद्दा बना चुकी है. मधेपुरा में हलवाई जाति से आने वाले 32 वर्षीय छोटे व्यवसायी अमित कुमार ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में कहा कि मोदी शासन में महंगाई चरम पर पहुंच गई है, लेकिन आय उस अनुपात में नहीं बढ़ रही है. मोदी राज में हमारे जैसे छोटे कारोबारियों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. केवल बड़े व्यवसायी ही समृद्ध हुए हैं.

लेकिन क्या करें, कोई चारा नहीं है. एक तरफ खाई तो दूसरी तरफ आग है. पानी है ही नहीं. आखिर मोदी के कारण ही आज पाकिस्तान हम पर एक पत्थर भी नहीं फेंक पाता. अनुच्छेद 370 हटा दिया गया है और भगवान को न केवल भारत में बल्कि दुबई में भी अपना स्थान मिल गया है. भागलपुर के सबौर क्षेत्र में मुकेश चौधरी भी महंगाई और बेरोजगारी से परेशान हैं, लेकिन वह मोदी को वोट दे रहे हैं क्योंकि वो देश के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगली पीढ़ी की जिंदगी बन जाएगी.

मुद्दा कौन सा हावी?

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में इस बार बगल के मुंगेर निर्वाचन क्षेत्र में ठेले पर केले बेचने वाले मल्लाह शत्रुघ्न सहनी मोदी के प्रबल समर्थक हैं. वह तुरंत कारण गिनाते हैं: राम मंदिर और मुगल आक्रमण के बाद पहली बार हिंदू गौरव की बहाली हुई. एक ही तो हिंदू नेता है देश में. वह मानते हैं कि महंगाई है, लेकिन कहते हैं कि एक बार मोदी सरकार सभी बांग्लादेशियों और पाकिस्तानियों को देश से बाहर निकाल दे, तो महंगाई अपने आप कम हो जाएगी. पान की दुकान के मालिक दीपक चौरसिया को चिंता है कि महंगाई राष्ट्रवाद पर हावी हो रही है. उन्होंने कहा कि महंगाई के कारण लोग वास्तव में पीड़ित हैं. जो लोग मेरी दुकान पर आते हैं वे हर समय इसके बारे में बात करते हैं.

लेकिन उनके पास मोदी को वोट देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. अरे, देश बचेगा तभी तो हम बचेंगे (हम तभी बचेंगे जब देश बचेगा). सुपौल में धानुक चाय दुकान के मालिक शिवपूजन मंडल का मानना है कि बढ़ती आबादी के कारण महंगाई बढ़ रही है. वह कहते हैं कि इसके बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता. सीतामढ़ी में सुअंश ठाकुर कहते हैं कि यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं कि बिहार में महंगाई है, बेरोजगारी है, यहां तक कि गरीबी भी है. हर दिन मोटरसाइकिल बिक रही हैं और लोग मटन और चावल खा रहे हैं. उन्होंने कहा कि वे मोदी को वोट दे रहे हैं.

लालू समर्थकों का तर्क

रक्सौल के 60 वर्षीय घनश्याम प्रसाद के लिए भी यही स्थिति है. उन्होंने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से बताया कि कोई महंगाई नहीं है. लोग साल में एक बार मटन खाते थे, जब मटन 50 रुपये प्रति किलो था, अब यह 600 रुपये प्रति किलो है और वे हर दिन खा रहे हैं. वह इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि उन्होंने लालू राज देखा है और इसे वापस नहीं चाहते हैं. मोतिहारी में राजमिस्त्री का काम करने वाले बनकट के टाटावा ईबीसी अशोक दास भी महंगाई से जूझ रहे हैं, लेकिन अनाज जमा करने वाले बेईमान व्यापारियों को इसके लिए दोषी मानते हैं.


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मोदी मुफ्त राशन के माध्यम से राहत प्रदान कर रहे हैं. इस लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election ) में बड़ा मुद्दा यह है कि अगर मोदी नहीं होंगे तो पाकिस्तान देश में घुस जाएगा. लौरिया में संजय जायसवाल, जो वाल्मीकि नगर निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है. वे बताते हैं कि लोग वास्तव में मूल्य वृद्धि और बेरोजगारी से पीड़ित हैं. लेकिन दो-तीन मंदिर और फिर हम मोदी को अलविदा कह देंगे. वाल्मिकी नगर निर्वाचन क्षेत्र के कपारधिक्का गांव के कुम्हार (ओबीसी) किशनदेव पंडित सरकार बदलना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि किसान चावल 20 रुपये किलो बेच रहा है और 40 रुपये किलो खरीद रहा है. क्या मंदिर हमें खाना देगा. बेहतर होता कि उस पैसे का उपयोग स्कूल और अस्पताल खोलने में किया जाता. सरकार ने स्मार्ट मीटर लगाए हैं जिससे बिजली का बिल बढ़ गया है। मोदी ने सब कुछ बेच दिया है.

मोदी समर्थकों का तर्क

मधेपुरा के एक राजपूत यूट्यूबर शिवशंकर सिंह कुछ परिप्रेक्ष्य जोड़ने की कोशिश करते हैं. मतदाता केवल बेतुके कारणों से मुद्रास्फीति का बचाव करके अपनी प्राथमिकता को उचित ठहरा रहा है. दरअसल, कुछ इलाकों में यह मजाक चल रहा है कि अब की बार, 400 पार’ सरसों के तेल की कीमतों के लिए एक नारा हो सकता है. मतदाताओं को जहर का इंजेक्शन दिया गया है. जब तक इसका असर रहेगा, यह जारी रहेगा. सीतामढ़ी के लेबर चौक पर शहर के आसपास के गांवों के दिहाड़ी मजदूर काम की कमी और महंगाई के बारे में बात करते हैं.

मजदूर रघुनाथ साहू कहते हैं कि कीमतें इतनी अधिक हैं कि दिन में दो भोजन की व्यवस्था करना मुश्किल हो गया है. हमें मुफ्त राशन नहीं चाहिए. बस यह सुनिश्चित करें कि हमें हर दिन काम मिले और हम जो चाहें उसे किसी भी कीमत पर खरीदेंगे. लेकिन वह महंगाई के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जिम्मेदार मानते हैं. एक अन्य मतदाता कहते हैं कि मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण किया, देश को दुनिया में शीर्ष स्थान पर पहुंचाया, जिसने अब इसे गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया है, और अन्य देशों को मिसाइलों का निर्यात कर रहा है. , जैसा कि बद्री राय, एक यादव, और सत्तार अंसारी मुस्कुराते हुए देखते हैं.

जाति सबसे आगे

कई वोटरों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि देखिए महंगाई और बेरोजगारी के अलावा नौकरी का मुद्दा बस मंच तक सीमित है. हम आपको बताते हैं सच्चाई क्या है. वोट भूमिहार, राजपूत, यादव और ओबीसी, अति-पिछड़ा कैंडिडेट की जाति पर डाले जा रहे हैं. वैसे वोटर मोदी को वोट दे रहे हैं उन्हें या तो उम्मीदवार पसंद नहीं है या उन्हें ये लगता है कि उसे हम वोट नहीं दे सकते हैं. वोटरों ने कहा कि तीसरे चरण में जिन सीटों पर चुनाव हुए हैं.

वोटरों ने सबसे पहले अपनी जाति देखी है। तेजस्वी यादव पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि उन्होंने जातिगत सर्वे के आधार पर आरजेडी के कैंडिडेट की सूची तैयार की है. जब राजनीतिक दल ही विकास के मुद्दे और बेरोजगारी पर कैंडिडेट्स नहीं तय कर रहे हैं, तो जनता कैसे महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर वोट देगी. ये जितने वोटरों से बातचीत की बात आप कह रहे हैं. वे बोलने के लिए ऐसा बोलते हैं.

प्रशांत किशोर ठीक कहते हैं, अपनी जाति को देखकर लोग वोट कर रहे हैं. पूरे बिहार में ऐसा ही हो रहा है. कई सीटों पर देखा गया है कि यादव वोटर या तो लालू यादव या फिर अपनी जाति के उम्मीदवारों को वोट दिए हैं। इतना ही नहीं जाति के आगे कोई मुद्दा सामने नहीं है. मोदी समर्थक बस यही कह रहे हैं कि वे उम्मीदवार नहीं, बस मोदी को वोट दे रहे हैं.

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