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National Politics : नीतीश और नायडू का पुराना इतिहास, नरेंद्र मोदी के दोनों पुराने ‘दुश्मन’, क्या देंगे इस बार साथ

लोकसभा चुनाव 2024 का जो रिजल्ट आया हैं, इसका प्रयास साल 2019 में चंद्रबाबू नायडू कर रहे थे. नायडू पांच साल पहले (National Politics) इसी प्रयास में थे कि नरेंद्र मोदी को केंद्र की सत्ता से हटाया जा सके. उस समय नायडू हर राज्य की राजधानी में जाकर नेताओं से बात कर रहे थे.

वह घूम घूम कर नेताओं से कह रहे थे कि हम सब मिलकर एक ऐसा फ्रंट बनाएं ताकि केंद्र की सत्ता से नरेंद्र मोदी को आउट कर सकें. साल 2023-24 में वही रोल नीतीश कुमार निभाते हुए दिखे. नीतीश कुमार भी सभी राज्यों की राजधानी में गए, अलग-अलग दलों के बड़े नेताओं से मुलाकात की और सबको इस बात के लिए तैयार किया कि अगर हम साथ हो जाते हैं तो एक ऐसा गठबंधन बना सकेंगे जिसके दम पर नरेंद्र मोदी को केंद्र की सत्ता से बाहर किया जा सकेगा.

अब नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जिस मंशा से साल 2019 और 2023 में घूम रहे थे आज उसे साकार करने का उनके पास अवसर आ गया है. इसे नियति ही कहेंगे कि कैसे राजनीति के कालचक्र का पहिया घूमा है कि आज दोनों नेता एनडीए में हैं, लेकिन उनके पास नरेंद्र मोदी के खिलाफ पुरान मंसूबा पूरा करने का मौका आया है. आज नीतीश, नायडू इस हालात में हैं कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं यह ये दोनों ही तय करेंगे.


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जेडीयू के पास 12 और चंद्रबाबू नायडू के पास 16 सीटें

लोकसभा चुनाव 2024 की टैली में जेडीयू के पास केवल 12 सीटें हैं और चंद्रबाबू नायडू के पास 16 सीटें हैं. खासकर नीतीश कुमार का नंबर 2019 के मुकाबले चार सीटें कम है. लेकिन बिहार में कहा जाता है कि इलेक्शन कोई लड़े, पर राजा कौन बनेगा यह नीतीश कुमार तय करते हैं. उसी हालात में नीतीश कुमार फिर से आ गए हैं. हालांकि उन्हें यह मौका इस बार केंद्र में मिला है. यह संयोग देखकर यही लगता है कि नीतीश कुमार के हाथों लकीर में राजयोग है.

फिलहाल पूरा देश दिल्ली की गद्दी को तय होते हुए देख रहा है. इस कहानी में संयोग यह है कि जब दिल्ली की राजगद्दी को स्थिर किया जाएगा तो उसके साथ और क्या-क्या हो जाएगा. यानी किस किस तरह की राजनीतिक डील तय होगी. इस डील का सबसे बड़ा फायदा नीतीश कुमार को बिहार में होगा. पिछले कुछ दिनों से पटना के राजनीतिक गलियारों में नीतीश कुमार की सीएम की कुर्सी डगमगाने की चर्चा होने लगी थी.

लोकसभा की 12 सीटें अब उसे स्थिर कर देगी. नीतीश कुमार 2024 में 16 सीटों पर लड़े और 12 सीटें जीते. अब उनकी सीएम की कुर्सी पक्की हो गई है. लोकसभा चुनाव में जो हालात बने हैं उसके बाद यह साफ हो गया है कि बीजेपी सपने में भी नहीं सोच सकती है कि नीतीश की सीएम की कुर्सी को हिलाया जाए. अब नीतीश कुमार के पास केंद्र की सरकार को बचाए रखने के लिए 12 सीटों की संजीवनी है.

नीतीश कुमार के पास विधानसभा की कम सीटों का दाग धोने का मौका

लोकसभा चुनाव रिजल्ट (National Politics) आने के बाद नीतीश कुमार के पास 2020 के बिहार विधानसभा में महज 43 सीटें जीतने का दाग धोने का भी मौका है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरोप लगते रहे कि बीजेपी की सह पर चिराग पासवान ने जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारे और नीतीश कुमार को तीसरे नंबर की पार्टी बनने को मजबूर कर गए. अब नीतीश कुमार बिहार में इस हालत में हैं कि वह बीजेपी के साथ अपने हिसाब से डील कर सकेंगे. बिहार में जब भी विधानसभा के चुनाव होंगे तब नीतीश बराबरी की हिस्सेदारी ले सकेंगे.

नीतीश कुमार देश की राजनीति (National Politics) में ऐसे नेता हैं जो अपनी सिमित राजनीतिक ताकत का भरपूर उपयोग करते रहे हैं. अब यही नजारा एक बार फिर से दिखेगा. बिहार में अगर बीजेपी जरा भी उनकी कुर्सी हिलाने का प्रयास करती है तो वह केंद्र में एनडीए की सरकार हिलाने का माद्दा रखते हैं. तय माना जा रहा है कि नीतीश कुमार अपनी इस ताकत का सटीक इस्तेमाल करेंगे.

12 सीटों से इंडिया गठबंधन के पीएम बनेंगे नीतीश?

इस वक्त राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि इंडिया गठबंधन क्या नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का पद ऑफर कर सकता है. ऐसे में एक बात ध्यान देने वाली है. नीतीश कुमार महज 43 विधायकों के साथ जब बिहार में मुख्यमंत्री बने तब गठबंधन के मजबूत सहयोगियों ने उनके साथ कैसा बर्ताव किया यह वह भली भांति समझते होंगे. वह समझते होंगे कम ताकत के साथ बड़ी जिम्मेदारी लेने के क्या नफा नुकसान है. ऐसे में वह 12 सीटों के साथ पीएम बनने का फैसला लेंगे या नहीं यह देखना होगा. अगर वह इस फैसले के साथ आगे बढ़ते हैं तो उन्हें कांग्रेस, सपा, टीएमसी जैसे दलों से आश्वासन लेना होगा कि वह उन्हें परेशान नहीं करेंगे, ताकि वह स्वतंत्रता के साथ केंद्र की सरकार चला पाएं.

चंद्रबाबू नायडू के पास भी सुनहरा मौका

साल 2004 की बात है. चंद्रबाबू नायडू के ऊपर आरोप लगते रहे हैं कि उन्हीं के दबाव में अटल बिहारी वाजपेयी अपने कार्यकाल के एक साल पहले लोकसभा चुनाव में जाने का फैसला किया था. इस फैसले से बीजेपी और अटल बिहारी वाजपेयी को गहरा धक्का लगा.

वाजपेयी सरकार लोकसभा चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थी, जनता ने उसके शाइनिंग इंडिया के नारे को पूरी तरह से नकार दिया था और केंद्र में यूपीए की सरकार बनी. अब चंद्रबाबू नायडू के पास यह राजनीतिक अवसर (National Politics) आया है कि वह अगर केंद्र में बीजेपी की सरकार बनाने में सहयोग करते हैं तो 2004 में अपने ऊपर लगे आरोप को धो सकते हैं.

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