लोकसभा चुनाव (UP Politics ) के बाद यूपी में बीजेपी को झटका लगा है. ऐसे में एक बार फिर सभी की नजरें सीएम योगी आदित्यनाथ पर फोकस हैं. अरविंद केजरीवाल के आरोपों पर फिर से चर्चा होने लगी है और माना जा रहा है कि चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन से योगी की पार्टी में स्थिति पर असर पड़ सकता है.
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा को जो बड़ा झटका लगा है, अब उसकी आंच प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर आती दिख रही है. चुनाव के नतीजों की रोशनी में भाजपा उत्तर प्रदेश में योगी फैक्टर की उपयोगिता पर फिर से विचार करने की तैयारी में है. इस बीच, यूपी की सियासत में अरविंद केजरीवाल के इन आरोपों की गूंज फिर से सुनाई देने लगी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि चुनाव के बाद योगी के पर कतरे जा सकते हैं.
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10 साल का सबसे खराब प्रदर्शन
भाजपा ने यूपी (UP Politics) में 10 साल का सबसे खराब प्रदर्शन किया है. न सिर्फ सीटों में गिरावट आई है बल्कि वोट शेयर भी काफी कम हुए हैं. कई केंद्रीय मंत्री चुनाव हारे हैं. मोदी फैक्टर के अलावा लोकसभा चुनाव में खासतौर पर उत्तर प्रदेश में योगी फैक्टर, कानून व्यवस्था, विकास और आक्रामक हिंदुत्व को भाजपा ने अपने अभियान का अहम हिस्सा बनाया था. पूरे चुनाव में भाजपा के कैंपेनिंग में इसी की गूंज सुनाई देती रही थी लेकिन अब लगता है कि योगी यूपी में भाजपा के लिए उपयोगी साबित नहीं हो पाए.
डबल इंजन लड़खड़ाया
उत्तर प्रदेश में इस बार भाजपा का ‘डबल इंजन’ लड़खड़ा गया और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने नारे ‘पीडीए’ से पिछड़े (पिछड़े), दलित और अल्पसंख्यक (अल्पसंख्यक) को टारगेट करने में सफलता हासिल कर ली. योगी ने राज्य में लगातार पांच चुनावों में भाजपा की जीत का नेतृत्व किया है. इसमें साल 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव, 2019 का लोकसभा चुनाव और दो स्थानीय निकाय चुनाव शामिल हैं.
योगी भाजपा के लिए एक तारणहार हैं
राजनीतिक पर्यवेक्षक कहते हैं कि चूंकि इन चुनावों में जीत का श्रेय योगी आदित्यनाथ को दिया गया था, इसलिए उन्हें इस निराशाजनक प्रदर्शन की भी जिम्मेदारी लेनी होगी लेकिन उन्हें बलि का बकरा भी नहीं बनाया जा सकता. दरअसल, भाजपा के उम्मीदवारों का चयन ऐंटी-इन्कम्बेंसी को नजरअंदाज करते हुए किया गया था और यह पार्टी की यूपी में हार के मुख्य कारणों में से एक बनकर उभरा है.
पार्टी के एक अंदरूनी सूत्र ने कहा कि योगी इस मामले में साफ बचे हुए हैं क्योंकि उम्मीदवारों के चयन की जिम्मेदारी केंद्रीय नेतृत्व के पास थी. उन्होंने कहा कि योगी को भाजपा के लिए एक तारणहार के रूप में देखा जाता है. उम्मीदवारों के चयन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी. जो लोग अपने खिलाफ बढ़ते आक्रोश के बावजूद जीते हैं, वे निश्चित रूप से अपनी सफलता के कारणों का आत्मनिरीक्षण करते समय मोदी फैक्टर के साथ-साथ योगी के योगदान को भी श्रेय देंगे.
मोदी ने भी की थी योगी प्रशंसा
इस बार यूपी (UP Politics) में अपनी हर चुनावी रैली में पीएम नरेंद्र मोदी ने भी योगी के उस कानून और व्यवस्था के मॉडल की प्रशंसा की, जिसने न सिर्फ राज्य में निवेश के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया, बल्कि औद्योगिक विकास में भी अहम भूमिका निभाई. मोदी जानते हैं कि अच्छे नतीजों के लिए वह किस सबसे महत्वपूर्ण “इंजन” पर भरोसा कर सकते हैं. एक अन्य एक्सपर्ट कहते हैं कि योगी-मोदी का डबल इंजन नैरेटिव राज्य में मतदाताओं को आकर्षित करने में विफल रही. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि यह एक बहुत प्रचलित नारा है और योगी अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल के आधे पड़ाव पर पहुंच गए हैं.
योगी पार्टी के सबसे अधिक मांग वाले स्टार प्रचारकों में से एक थे, जिन्होंने लगभग 170 रैलियों को संबोधित किया. इसमें यूपी ही नहीं बल्कि बाहर के राज्यों की भी रैलियां शामिल हैं. इससे पहले, वे यूपी में पहले ही सभी 75 जिलों का दौरा कर चुके थे लेकिन यह स्पष्ट रूप से पर्याप्त नहीं था. चुनाव के नतीजों के आने के बाद शीर्ष स्तर पर पार्टी में उनकी स्थिति को झटका लगेगा. हालांकि, यह झटका कितना बड़ा होगा, यह बहस का विषय हो सकता है.
केजरीवाल के आरोप फिर चर्चा में
इस बीच, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के वे आरोप फिर से चर्चा में हैं, जिसमें केजरीवाल ने दावा किया था कि भाजपा की जीत के बाद, योगी को कई अन्य भाजपा सीएम की तरह हटा दिया जाएगा. यूपी (UP Politics) पर नजर रखने वालों के अनुसार, दिल्ली के सीएम ने एक ‘झूठा नैरेटिव’ बनाने की कोशिश की कि भाजपा के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है और शीर्ष नेतृत्व योगी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण उनसे चिंतित है और इससे मतदाताओं के एक वर्ग पर असर पड़ सकता है.
चुनाव के दौरान ठाकुरों के विरोध प्रदर्शनों के बारे में चर्चा के दौरान भी योगी का नाम सामने आया था. विरोध प्रदर्शनों के प्रचार ने पार्टी की संभावनाओं को काफी प्रभावित किया. खासकर पहले दो चरणों में. विश्लेषक कहते हैं, “लेकिन वे अकेले नहीं थे. विरोध प्रदर्शनों की तीव्रता का आकलन करने में यूपी भाजपा की अक्षमता भी जिम्मेदार है. उन्होंने आगे कहा कि योगी की वजह से भाजपा को नुकसान कम हुआ. भाजपा द्वारा जीती गई सीटें भी यही दर्शाती हैं.
केंद्र की राजनीति में उत्तर प्रदेश का योगदान
आपको बात दें कि उत्तर प्रदेश (UP Politics) भारत का चौथा सबसे बड़ा राज्य है. इसके साथ ही यह सबसे अधिक लोकसभा सीटों वाला राज्य है. लोकसभा (UP Lok Sabha Results) के चुनावी रण में प्रदेश से कुल 80 सीटें पर दांव है. केंद्र की राजनीति में उत्तर प्रदेश का विशेष योगदान रहता है। वही यूपी लोकसभा चुनाव में इस बार भाजपा के हाथ में पिछले चुनाव को देखते कम सीटें लगी है. इस बार सियासी संग्राम में भाजपा को 33 सीटों से ही संतोष करना पड़ा, जिसका असर एनडीए की कुल सीटों में देखा जा सकता है.
यूपी में कुल सीटों के समीकरण की बात करें, तो सपा-कांग्रेस के गठबंधन ने कुल 43 सीटों पर विजयी ध्वज फहराया है. जिनमे सपा 37 और कांग्रेस को कुल 6 सीटें मिली हैं. वहीं, भाजपा के खाते में 33 सीटें आई है. भाजपा के सहयोगी रालोद ने 2, व अपना दल ने 1 सीट जीती है.