रेल हादसों को शून्य करने के दावो के बीच कवच सिस्टम (kavach System) फेल कैसे हो जा रहा हैं. फिलहाल पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में हुए रेल हादसे में नौ लोगों की मौत हो गई. जिस वक़्त यह हादसा हुआ उस वक़्त कंचनजंघा एक्सप्रेस ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन को पार कर सियालदह की तरफ जा रही थी, तभी पीछे से इसे एक मालगाड़ी ने टक्कर मार दी. ये टक्कर इसलिए हुई क्योंकि मालगाड़ी के लोको पायलट ने सिग्नल तोड़ दिया, जिससे ये पटरी पर खड़ी कंचनजंघा से भिड़ गई.
इस हादसे के बाद लोग सवाल कर रहे हैं कि आख़िर इस मामले में रेलवे की ओर से बनाए गए सिस्टम ‘कवच’ (kavach System) ने क्यों काम नहीं किया. रेलवे ने दावा किया था कि ऐसे हादसों से बचाने के लिए ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम कवच को बनाया गया था. यह सिस्टम ऐसे ही सिग्नल लांघने से पैदा होने वाले खतरों का मुकाबला करने के लिए बनाया गया था. कवच’ स्वदेशी तकनीक है और दावा किया गया था कि इस तकनीक को भारतीय रेल के सभी व्यस्त रूट पर लगाया जाएगा, ताकि रेल हादसों को रोका जा सके.
क्या है कवच सिस्टम
कवच सिस्टम ( kavach System ) यह एक तरह की डिवाइस है जो ट्रेन के इंजन के अलावा रेलवे के रूट पर भी लगाई जाती है. इससे दो ट्रेनों के एक ही ट्रैक पर एक-दूसरे के क़रीब आने पर ट्रेन सिग्नल, इंडिकेटर और अलार्म के ज़रिए ट्रेन के पायलट को इसकी सूचना मिल जाती है.
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तमाम दावों के बाद भी रेल हादसों पर रोक नहीं लग पा रही है.
सबसे बड़ी बात यह है कि जिस तरह के हादसे को रोकने के लिए ‘कवच’ को विकसित किया गया था, उसी तरह का हादसा पिछले साल ओडिशा में हुआ था. इस हादसे में 275 लोग मारे गए थे. सेंट्रल रेलवे बोर्ड की सीईओ और चेयरमैन जया वर्मा सिन्हा ने बताया कि ‘कवच’ सिस्टम 1,500 किमी में लगाया जा चुका है और इस साल 3,000 और किलोमीटर में लगाया जाएगा. उनका कहना है कि इसी तरह अगले साल फिर से 3,000 किलोमीटर में इसे लगाया जाएगा.
जया ने बताया कि इस साल की योजना में पश्चिम बंगाल भी शामिल है, लेकिन हादसे वाली जगह पर अभी तक नहीं लग पाया है. उन्होंने कहा कि यह महंगा सिस्टम है, इसलिए इसे चरणबद्ध तरीके से लगाया जा रहा है. इकोनॉमिक टाइम्स ने भारतीय रेलवे की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि रेलवे ने दस हजार किलोमीटर के लिए कवच का टेंडर जारी करने का फैसला किया था. अभी तक छह हजार किलोमीटर पर कवच सिस्टम के लिए टेंडर जारी हुए हैं. इसमें से साउथ सेंट्रल रेलवे के 1465 किलोमीटर रूट और 139 इंजनों में कवच लगाया गया था.
दो ट्रेन एक ही ट्रैक पर, एक-दूसरे के क़रीब आ जाएं
भारत में दो ट्रेनों के आपस में टकराने (हेड ऑन कोलिजन) को रोकने के लिए गंभीरता से काम साल 1999 में हुए गैसल रेल हादसे के बाद शुरू हुआ था. इस हादसे में अवध-असम एक्सप्रेस और ब्रह्मपुत्र मेल ट्रेन आपस में टकरा गई थीं, जिससे क़रीब 300 लोगों की मौत हो गई थी. उसके बाद भारतीय रेल के कोंकण रेलवे ने गोवा में एंटी कोलिजन डिवाइस या एसीटी की स्वदेशी तकनीक पर काम शुरू किया था.
इसमें ट्रेनों में जीपीएस आधारित तकनीक लगाई जानी थी, जिससे दो ट्रेन एक ही ट्रैक पर, एक-दूसरे के क़रीब आ जाएं तो सिग्नल और हूटर के ज़रिए इसकी जानकारी ट्रेन के पायलट को पहले से मिल जाए. शुरू में इस तकनीक में देखा गया कि दूसरे ट्रैक पर भी कोई ट्रेन आ रही हो तब भी इस तरह से सिग्नल मिलने लगते हैं. इस तकनीक में दूसरे देशों में भी कुछ खामियां देखी गई थीं और इससे बेहतर सुरक्षा तकनीक ज़रूरत महसूस की गई.
कोंकण रेलवे के पूर्व प्रोजेस्ट मैनेजर सतीश कुमार रॉय ने बीबीसी को बताया है कि कोंकण रेलवे ने जिस एन्टी कोलिजन डिवाइस को विकसित किया था वह काफी सस्ती तकनीक थी और 2019 तक नार्थ फ्रंटियर रेलवे के क़रीब 1600 किलोमीटर रूट पर 10 साल तक इसका सफल ट्रायल भी हुआ.
ख़र्च की वजह से योजना ठंडे बस्ते में
सतीश कुमार राय के मुताबिक़ बाद में रेलवे ने ख़र्च की वजह से ही इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया, जबकि इससे महंगी कई यूरोपीय तकनीक को खरीदने पर विचार होने लगा. इस तरह से कोंकण रेलवे की तकनीक धीरे धीरे ठंडे बस्ते में चली गयी. रेलवे ने बाद में विजिलेंस कंट्रोल डिवाइस को विकसित कर इस तरह के हादसों को रोकने पर विचार भी किया था. उसके बाद ट्रेनों की टक्कर को रोकने के लिए ट्रेन प्रोटेक्शन वार्निंग सिस्टम या टीपीडब्ल्यूएस और टीकैस यानी ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम पर भी विचार हुआ.
इस तरह की तकनीक को विदेशों से ख़रीदने पर यह काफ़ी महंगा साबित हो रहा था, इसलिए रेलवे ने इसकी तकनीक ख़ुद विकसित करने पर ज़ोर दिया और इसी सिलसिले में टीकास की तर्ज पर ‘कवच’ नाम की देशी तकनीक को अपनाया गया.
पिछले साल भारत के साउथ सेंट्रल रेलवे में ट्रायल के बाद यह दावा किया गया था कि साल 2022-23 तक इसे 2000 किलोमीटर नेटवर्क पर लगा लिया जाएगा. यानि भारतीय रेल के क़रीब 65 हज़ार रूट किलोमीटर नेटवर्क के केवल व्यस्त सेक्शन पर भी इस तकनीक को लगाने में अभी लंबा समय लग सकता है.
रेल हादसों को शून्य करने का दावा
भारतीय रेल अक्सर ज़ीरो टॉलरेंस टूवार्ड्स एक्सीडेंट की बात करती है. यानी रेलवे में एक भी एक्सीडेंट को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. आमतौर पर हर रेल मंत्री की प्राथमिकता में यह सुनने को मिलता है. लेकिन पिछले 15 साल में दस से ज़्यादा रेल मंत्री पाने के बाद भी भारत में रेल हादसे नहीं रुके हैं. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव मार्च 2022 में सिकंदराबाद के पास ‘कवच’ (kavach System) के ट्रायल में ख़ुद शरीक हुए थे.
उस वक़्त यह दावा किया गया था कि कवच (kavach System) भारतीय रेल में हादसों को रोकने की सस्ती और बेहतर तकनीक है. रेल मंत्री ने ख़ुद ट्रेन के इंजन में सवार होकर इसके ट्रायल के वीडियो बनवाए थे, लेकिन इस तकनीक की क्षमता पर सवाल उठाया जा रहा है. हादसों के लिहाज़ से भारत में पिछली सरकारों का रिकॉर्ड भी ख़राब रहा है और मौजूदा सरकार में भी कई बड़े रेल हादसे हो चुके हैं. रेलवे में कई हादसे ऐसे भी होते हैं जिसकी चर्चा तक नहीं होती है.
ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फ़ेडरेशन के महामंत्री शिव गोपाल मिश्रा के मुताबिक, “हर साल क़रीब 500 रेलवे कर्मचारी ट्रैक पर काम करने के दौरान मारे जाते हैं. यही नहीं मुंबई में हर रोज़ कई लोग पटरी को पार करते हुए मारे जाते हैं. रेलवे की प्राथमिकता ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने की नहीं बल्कि सुरक्षा होनी चाहिए.