लोकसभा चुनाव खत्म होते ही बिहार में अब विधानसभा की 4 सीटों पर उपचुनाव (Bihar By-election 2024) होना तय है. रुपौली सीट पर निर्दलीय शंकर सिंह की जीत चुके हैं. इसके बाद अब सबकी नजर राजद (RJD) की खाली हुई सीट रामगढ़ और बेलागंज के साथ-साथ हम (HAM) की खाली हुई सीट इमामगंज पर है. वहीं, तरारी सीट भाकपा-माले की खाली हुई सीट है.
जहानाबाद की बेलागंज सीट
जहानाबाद से एमपी बने सुरेन्द्र यादव भी अपने बेटे विश्वनाथ यादव के लिए राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद से अपने द्वारा खाली की गई ‘बेलागंज’ सीट से टिकट मांग रहे हैं. सुरेन्द्र यादव बेलागंज सीट से 1990 से लगातार विधायक चुने जाते रहे हैं. उनकी सीट पर मजबूत पकड़ है. उनके बेटे विश्वनाथ भी पिता के चुनाव में काम करते रहे हैं. इस बार जहानाबाद लोकसभा सीट से सुरेन्द्र यादव को जीत दिलाने में भी उनकी भूमिका रही है. ऐसे में सुरेन्द्र यादव बेलागंज विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव (Bihar By-election 2024) में अपने बेटे को ही टिकट दिलाने की एड़ी चोटी की जोर लगाए हुए हैं.
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रामगढ़ सीट
परिवारवाद के इस खेल में राजद भी पीछे नहीं है. प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद के बेटे सुधाकर सिंह के एमपी बनने से ‘रामगढ़’ सीट खाली हुई है. इसी सीट से खुद जगदानंद वर्ष 1985 में अपने चचेरे भाई सच्चिदानंद सिंह को हराकर पहली बार विधायक बने थे. वे वर्ष 2005 तक लगातार रामगढ़ से विधानसभा चुनाव जीतते रहे. 2020 में सुधाकर सिंह विधायक बने. इस बार सुधाकर बक्सर सीट से एमपी बन गए तो अब जगदानंद अपने दूसरे बेटे अजीत सिंह को जदयू से राजद में लाकर विधायक बनाने की जुगत में जुट गए हैं. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने भी रामगढ़ सीट से उपचुनाव में अजीत के लड़ने को हरी झंडी दे दी है.
इमामगंज सीट
हम (से.) के नेता जीतनराम मांझी के एमपी बनने से ‘इमामगंज’ सीट खाली हुई है. जीतनराम मांझी खुद केन्द्रीय मंत्री है तो उनके बेटे संतोष कुमार सुमन बिहार की एनडीए सरकार में मंत्री हैं. अब जीतन राम मांझी अपने दूसरे बेटे प्रवीण मांझी को इमामगंज से लड़ाने की तैयारी कर रहे हैं. हालांकि पार्टी के नेताओं की इच्छा किसी वर्कर को टिकट दिलाने की है, पर मांझी के करीबी का मानना है कि प्रवीण मांझी को ही उम्मीदवार बनाने की तैयारी चल रही है.
तरारी विधानसभा सीट
तरारी भाकपा-माले की खाली हुई सीट है. इस सीट पर अभी तक किसी की दावेदारी सामने नही आई है. हालंकी भाकपा-माले इस सीट को लेकर मंथन में जुट चुकी हैं. ऊपर की तीन सीटो पर जिस तरह से परिवारवाद हावी है. भाकपा माले इससे हटकर अपना उम्मीदवार तय करती हैं, और याहा कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने की परंपरा है. अब देखना यह है कि तरारी विधानसभा से माले किसकी उम्मीदवारी पर मुहर लगाती हैं.