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Former judge Rohit Arya : हाईकोर्ट के पूर्व जज भाजपा में शामिल, कहा- मेरी सोच भाजपा की विचारधारा से मेल खाती है

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व जज रोहित आर्य (Former judge Rohit Arya) शनिवार (13 जुलाई) को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए. वह तीन महीने पहले 27 अप्रैल को सेवानिवृत्त हुए थे. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस आर्य को मध्य प्रदेश के भाजपा प्रदेश कार्यालय मंत्री राघवेंद्र शर्मा ने भोपाल स्थित पार्टी के प्रदेश कार्यालय में सदस्यता दिलाई.

लाइव लॉ से बातचीत में आर्य (Former judge Rohit Arya) ने कहा है, ‘हां, मैं भाजपा में शामिल हो गया हूं. शनिवार को मध्य प्रदेश भाजपा ने मुझे भोपाल में एक कार्यक्रम/सेमिनार में आमंत्रित किया, जहां मैंने तीन नए आपराधिक कानूनों की सराहना की. कार्यक्रम के दौरान पार्टी के सदस्यों ने मुझे भाजपा से जुड़ने के लिए प्रेरित किया. मैं उनसे बहुत प्रभावित हुआ और मना नहीं कर पाया.


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आर्य ने लाइव लॉ को बताया, ‘मेरी सोच भाजपा की विचारधारा से मेल खाती है. यह एक ऐसी पार्टी है जो मानवीय मूल्यों में विश्वास रखती है.’

बार एंड बेंच के अनुसार, जस्टिस आर्य (Former judge Rohit Arya) ने साल 1984 में वकील के रूप में पंजीकरण कराया था. 2003 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उन्हें वरिष्ठ वकील नियुक्त किया था. आर्य की वकालत मुख्य रूप से सिविल लॉ, कमर्शियल लॉ, एडमिनिस्ट्रेटिव लॉ और सर्विस लॉ में रही है. इसके अलावा उन्होंने केंद्र सरकार, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, टेलीकॉम विभाग, बीएसएनएल, कर्मचारी राज्य बीमा निगम और आयकर विभाग जैसे निकायों का प्रतिनिधित्व भी किया है.

राय और फैसलों के लिए कई बार चर्चा में रहे हैं पूर्व जज

रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई 2020 में जस्टिस आर्य (Former judge Rohit Arya) ने एक महिला से छेड़खानी के मामले में 26 वर्षीय आरोपी को इस शर्त जमानत दी थी कि वह शिकायतकर्ता से राखी बांधने के लिए अनुरोध करे और हमेशा उसकी सुरक्षा करने का वादा करे. इतना ही नहीं, जस्टिस आर्य ने आरोपी से अपनी पत्नी के साथ जाकर शिकायतकर्ता को आशीर्वाद, 11,000 रुपये और मिठाई देने का आदेश दिया था. इसके अलावा, आर्य ने आरोपी को शिकायतकर्ता के बेटे को 5,000 रुपये देने का आदेश दिया था ताकि वह कपड़े और मिठाई खरीद सके.

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जाहिर करते हुए कहा था, ‘जमानत की शर्त के रूप में राखी बांधने का आदेश देने का मतलब है कि न्यायिक आदेश के माध्यम से एक छेड़खानी करने वाले व्यक्ति को भाई में बदल देना. यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है… यौन उत्पीड़न कोई छोटी घटना नहीं है कि राखी बंधवाकर और उपहार देकर ठीक किया जा सके.’ सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर और भी गाइडलाइन जारी कीं ताकि अधीनस्थ अदालतें यौन हिंसा से जुड़े मामलों में असंवेदनशील जमानती आदेश न दें.

जनवरी 2021 में जस्टिस आर्य ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए स्टैंडअप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था, ‘सद्भाव और सामान्य भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक कर्तव्य है.’ फारुकी को उनके शो शुरू होने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था, ऐसा एक भाजपा विधायक द्वारा यह कहे जाने के आधार पर किया गया था कि उन्होंने रिहर्सल के दौरान कुछ आपत्तिजनक सुना था.

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