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Nitish Kumar : नीतीश कुमार के गले की फांस बनते जा रहा उनका ही ड्रीम प्रोजेक्ट

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की छवि बिहार को बेहतर बनाने वाले नेता के रूप में है. टारगेट बना कर वे चुनिंदा खास तबकों को भी लाभ पहुंचाते हैं तो आम जन के लिए भी उनके बहुतेरे काम हैं. मुख्य सड़क, लिंक रोड और गांव-गली के टोले अब बारिश की तकलीफ नहीं झेलते. उनकी आवाजाही के लिए अब पीसीसी पथ बन गए हैं.

गांवों में 20-22 घंटे बिजली की आपूर्ति हो या हर घर बिजली के उजाले का इंतजाम, नीतीश ने संभव कर दिखाया है. राजधानी पटना से बिहार के शहरों की दूरी अब कम वक्त की हो गई है. कुछ गड़बड़ियों को अपवाद मान लें तो नल का जल भी सूबे के हर घर में पहुंच गया है.

नीतीश नुकसान की परवाह नहीं करते

टारगेट कर नीतीश ने महिलाओं को अलग-अलग योजना के जरिए लाभुक बना दिया है, जो उनकी अब कोर वोटर हैं. दलित समाज के महादलितों के लिए नीतीश कुमार की खास योजनाएं हैं. पर, नीतीश अपनी जिद से अपना नुकसान भी कर बैठते हैं. फिर भी वह अपने होने वाले नुकसान की परवाह नहीं करते.

चुकी बिहार में तकरीबन खत्म हो चुके आरजेडी को ऑक्सीजन 2015 में नीतीश ने ही दिया. वही आरजेडी अब नीतीश का सबसे बड़ा सियासी दुश्मन है. नीतीश ने भाजपा से समय-समय पर अलग होकर अपना अहित ही किया. हालांकि हर बार उन्हें इसका एहसास भी हुआ. फिर भी वह अपने होने वाले नुकसान की परवाह नहीं करते.

जहरीली शराब से 156 की मौत

सच कहें तो आरजेडी के साथ जाने और भाजपा से रिश्ता तोड़ने का नीतीश (Nitish Kumar) को सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि वर्ष 2010 में 115 विधायकों वाला जेडीयू 2020 में राजनीति में साल-दो साल पहले आए लोजपा (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान की चोट से बिलबिला गया. जेडीयू को महज 43 सीटें ही मिलीं शराबबंदी की उनकी एक जिद से बिहार को आठ सालों में 32 करोड़ रुपए से अधिक के कर राजस्व का नुकसान हुआ है.

जहरीली शराब से मौत की कई घटनाएं हुईं. सरकारी आंकड़ों को मानें तो इस दौरान 156 लोगों की मौतें जहरीली शराब से हुईं. हालांकि सरकार के पास जहरीली शराब से संदिग्ध मौतों के 266 मामले आए. पर, पुष्टि 156 की ही हो पाई.


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बिहार में शराब तस्करी

बिहार में शराब तस्करी ने बालू के कारोबार की तरह समांतर अर्थव्यवस्था विकसित कर दी है, यह अलग स्थिति अलग है. जीतन राम मांझी कह रहे. कभी नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के बेहद करीबी रहे और अब जन सुराज पार्टी लांच करने जा रहे प्रशांत किशोर भी बता रहे हैं कि पीने वाले अब भी पीते हैं. उन्हें अब दुकान पर नहीं जाना पड़ता. होम डिलीवरी की सुविधा हो गई है. ताड़ी-शराब के पारंपरिक कारोबार से जुड़े अधिकतर दलित लोग ऐसा करने पर अब जेल जाते हैं.

ये दलित वोटर नीतीश (Nitish Kumar) के ही थे. वर्ष 2016 से अब तक शराब पीने और बेचने वाले 12.49 लाख लोगों की गिरफ्तारी हुई है. 8 लाख 43 हजार से ज्यादा एफआईआर दर्ज हुई हैं.

अब नीतीश की दूसरी जिद देखिए

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने बिहार में बिजली के लिए प्रीपेड मीटर लगवाना शुरू किया है. इससे बकाए की जरूर समस्या खत्म हो जाएगी. जब बिजली की कीमत पुरानी है तो किसी को मीटर लगवाने में एतराज भी नहीं होगा. पर, मीटर अगर हिरण की तरह कुलांचे मारने लगे और खाली घर में भी मीटर खासा खपत शो करने लगे तो लोगों के गुस्से का अंदाजा लगाया जा सकता है.

अव्वल तो ऐसे मीटर की खरीद का जिम्मा जिस संजीव हंस को दिया गया था, उनकी बेशुमार संपत्ति प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जब्त की है. आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने वाले उस अधिकारी पर क्यों न शक किया जाए कि उन्होंने दोषपूर्ण मीटर खरीदा होगा.

तेजस्वी यादव का तंज

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के घोर विरोधी बने आरजेडी नेता और पूर्व डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव ने जनता से जुड़े इस मुद्दे को लपक लिया है. आरजेडी ने इसे आंदोलन का रूप देने की घोषणा कर दी है. तारीख भी मुकर्रर हो गई है- पहली अक्टूबर 2024. जनता के मुद्दे पर आरजेडी का यह पहला आंदोलन होगा.

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने एक और जिद ठानी है जमीन सर्वे कराने की. इसी साल 20 अगस्त से इसकी शुरुआत हुई है. अंग्रेजों के शासन के बाद पहली बार बिहार में जमीन सर्वे हो रहा है. कई पीढ़ियां इस बीच गुजर चुकी हैं. बाढ़ और अन्य कारणों से अधिकतर लोगों के पास खतियान ही नहीं है.

जमीन सर्वे का नुकसान

खतियानी जमीन के कागजात जो सरकार ने कंप्यूटरीकृत कराए हैं, उनमें कई तरह की खामियां मिल रही हैं. यह काम जनता की परेशानी को देखते हुए सरकार ने रोक कर तीन महीने की मोहलत तो दे दी है, लेकिन लोगों को कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं.

कहीं कैथी लिपि में खतियान है तो कहीं परिमार्जन और अद्यतन मालगुजारी की रशीद पाने के लिए लोग कर्मचारी के पास दौड़ रहे हैं. जमीन कब्जे में तो है, पर उसकी सही माप लोगों के पास नहीं है. इसलिए सरकारी अमीन के पास लोग भाग रहे हैं. रोजी-रोटी के लिए बाहर कमाने गए लोग बेमौसम घर लौट आए हैं. पूरा बिहार हलकान है.

कई राज्यों में फेल रहा है सर्वे

बिहार से पहले दो राज्यों ने भूमि सर्वे का काम शुरू कराया था. इनमें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना भी शामिल हैं. आंध्र प्रदेश में तो यह काम तकरीबन तीन दशक बाद भी नहीं हो सका. तेलंगाना में केसी राव की सरकार को इसकी महंगी कीमत चुकानी पड़ी. उनकी सरकार ही चली गई. नीतीश कुमार का दावा है कि बिहार में हत्या की जो घटनाएं होती हैं, उनमें ज्यादातर मामले भूमि विवाद से ही जुड़े होते हैं.

सर्वे हो जाने पर इस तरह की घटनाओं में कमी आएगी. यह सोचना यकीनन नीतीश कुमार की नेकनीयती है, लेकिन जनता के हित के लिए उसे परेशान करना उनके लिए भी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की तरह महंगा पड़ जाए तो आश्चर्य नहीं.

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