अब से ठीक पांच साल पहले की बात है.. वर्ष 2019 में लोकसभा का चुनाव हो चुका था. साल भर बाद बिहार विधानसभा का चुनाव होना था. सभी सियासी खेमे विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लगे हुए थे. चुनावी मु्द्दों पर मंथन चल रहा था. इसी दौरान नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सत्ताधारी जेडीयू के भीतर भयंकर घमासान मचा था. जेडीयू के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह और उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर आपस में गुत्थमगुत्था कर रहे थे. नागरिकता कानून पर प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह उलझे हुए थे. प्रशांत नागरिकता कानून के खिलाफ थे और बहैसियत पार्टी अध्यक्ष आरसीपी सिंह भाजपा की तरफदारी कर रहे थे.
आरसीपी और PK भी टकराए थे
आरसीपी सिंह और प्रशांत किशोर के बीच तकरार का एक और मुद्दा था. आरसीपी सिंह की योजना नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के 15 साल के कामकाज के आधार पर 2020 का विधानसभा चुनाव लड़ने की थी. प्रशांत किशोर का कहना था कि भविष्य की योजनाओं को चुनाव का मुद्दा बनाया जाना चाहिए. तनातनी का एंड रिजल्ट सबको मालूम है. पहले प्रशांत किशोर को नीतीश ने बाहर का रास्ता दिखाया. फिर आरसीपी को बाहर जाने को बाध्य होना पड़ा.
पर कतरने का नीतीश का नुस्खा
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की राजनीति का यह आजमाया तरीका है. हालांकि यह भी सच है कि वे जिसे भी पार्टी में ऊंचे ओहदे पर बिठाते हैं, वह अपने को उनका उत्तराधिकारी समझने की भूल कर बैठता है. आरसीपी सिंह और प्रशांत किशोर भी इसी मुगालते के शिकार हुए थे. वैसे भी नीतीश अपने कद से बड़ा किसी को होने नहीं देते. समता पार्टी के समय से ही ऐसा वे करते रहे हैं. पहले जार्ज फर्नांडिस और बाद में शरद पवार की नीतीश ने क्या गति की, किसी से छिपा नहीं है. बाद में आरसीपी, उपेंद्र कुशवाहा, प्रशांत किशोर भी उसी गति को प्राप्त हुए.
नीतीश के उत्तराधिकारी की जंग
जेडीयू के भीतर फिर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के उत्तराधिकारी की जंग छिड़ी हुई है. संजय झा को नीतीश ने जब कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया तो उनके भीतर भी पार्टी में नंबर दो की हैसियत का भ्रम हो गया. हालांकि नीतीश कुमार के लिए संजय झा के महत्व को कमतर नहीं आंका जा सकता है. आरएसएस की पृष्ठभूमि से राजनीति में आए संजय जेडीयू और भाजपा के बीच महत्वपूर्ण कड़ी भी साबित होते रहे हैं. इंडिया ब्लाक से एनडीए में इस बार नीतीश की वापसी कराने में संजय झा की ही खास भूमिका बताई जाती रही है.
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संजय के निर्देश से नीतीश असहज!
संजय झा के एक निर्देश ने नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को असहज कर दिया है. उनका निर्देश नीतीश कुमार के खास बन कर उभरे मनीष वर्मा को लेकर जारी हुआ है. नीतीश की सलाह पर आईएएस की नौकरी छोड़ कर मनीष ने जेडीयू ज्वाइन किया. नीतीश ने उन्हें जेडीयू का राष्ट्रीय महासचिव भी बना दिया. सरकार में न रहते हुए भी मनीष वर्मा जल्दी ही नीतीश के बाद दूसरे नंबर का पावर सेंटर बन गए. विधायकों, मंत्रियों, नेताओं और कार्यकर्ताओं का जमावड़ा मनीष वर्मा के घर होने लगा. नीतीश के गृह जिले के रहनीहार और उनके स्वजातीय होने के कारण लोग उन्हें नीतीश का उत्तराधिकारी मानने लगे.
मनीष का कार्यक्रम संजय ने रोका
मनीष वर्मा को नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने जिलों में कार्यकर्ता समागम का दायित्व सौंपा. वे इसमें कामयाब भी दिख रहे थे. उनकी मिलन सारिता की तारीफ भी हो रही थी. इस बीच अचानक कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा के निर्देश पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने तत्काल प्रभाव से कार्यकर्ता समागम का कार्यक्रम स्थगित करने का पत्र जारी कर दिया.
पत्र भी तब जारी हुआ, जब मनीष वर्मा किसी शादी समारोह में शामिल होने झारखंड गए थे. माना जा रहा है कि जनवरी से शुरू हो रहे एनडीए के साझा कार्यक्रम और अभी चल रहे जिलावार दूसरे कार्यक्रमों के मद्देनजर मनीष वर्मा के कार्यकर्ता समागम को संजय झा अनुपयोगी समझा होगा. पर, इसके साथ ही पार्टी में इसे वर्चस्व की जंग भी बताया जा रहा है.
क्या हो सकता है नीतीश का निर्णय
पिछले अनुभवों के आधार पर कयास लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) कहीं कोई कड़ा फैसला न ले लें. आरसीपी सिंह और प्रशांत किशोर के विवाद में नीतीश ने दोनों को सबक सिखाया था. क्या इस बार भी नीतीश उसी तरह का कोई कदम उठाएंगे, यह सवाल सियासी गलियारे में गूंज रहा है.