केंद्र सरकार मंगलवार दोपहर लोकसभा में ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation One Election Bill ) विधेयक पेश करेगी. यह बिल लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव रखता है. इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम से पहले, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने लोकसभा में अपने सभी सांसदों के लिए तीन-लाइन व्हिप जारी किया है.
इस बिल के पेश होने के बाद, इसे व्यापक विचार-विमर्श के लिए संसद की एक संयुक्त समिति को भेजा जाएगा. इस समिति का गठन विभिन्न दलों के सांसदों की संख्या के आधार पर होगा. जहाँ BJP और उसके सहयोगी दल इस बिल का समर्थन कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और DMK जैसे कई विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं.
क्यों खास है यह बिल?
‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation One Election Bill) विधेयक, जिसे संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल द्वारा पेश किया जाएगा. यह विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव रखता है.
इसके साथ ही, अर्जुन मेघवाल केंद्र शासित प्रदेश अधिनियम, 1963, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991, और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन के लिए एक और विधेयक भी पेश कर सकते हैं. यह विधेयक दिल्ली,जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने के लिए आवश्यक बदलाव की बात करता है.
बीजेपी ने जारी किया व्हिप
BJP के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने भी लोकसभा में अपने सभी सांसदों के लिए व्हिप जारी किया है. शिवसेना (शिंदे गुट) ने भी अपने सभी सांसदों को सदन में उपस्थित रहने को कहा है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस महीने की शुरुआत में ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक को मंजूरी दे दी थी.
विधेयक पेश होने के बाद, केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला से ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक को व्यापक परामर्श के लिए संसद की एक संयुक्त समिति को भेजने का अनुरोध करने की उम्मीद है. यह संयुक्त समिति विभिन्न दलों के सांसदों की संख्या के आधार पर, आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर गठित की जाएगी.
एनडीए का समर्थन, विपक्ष का विरोध
भाजपा और उसके सहयोगी दल इस विधेयक का समर्थन करते हैं, जबकि कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और DMK सहित कई विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सितंबर में एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया था. इस समिति के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद थे. इन सिफारिशों को पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट में उल्लिखित किया गया था.
समिति ने दो चरणों में एक साथ चुनाव (One Nation One Election Bill) लागू करने की सिफारिश की थी. पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने और दूसरे चरण में आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और नगर पालिका) कराने की सिफारिश की गई थी. रिपोर्ट में सभी चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची बनाने की भी सिफारिश की गई थी.
भारत में चुनाव पर ख़र्च
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (One Nation One Election Bill) के पीछे बड़े चुनावी ख़र्च की दलील भी कई बार दी जाती है.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत इसके बारे में बीबीसी को बताया था कि भारत का चुनाव दुनियाभर में सबसे सस्ता चुनाव है. भारत में चुनावों में क़रीब एक अमेरिकी डॉलर (आज की तारीख में करीब 84 रुपये) प्रति वोटर के हिसाब से ख़र्च होता है. इसमें चुनाव की व्यवस्था, सुरक्षा, कर्मचारियों का तैनाती, ईवीएम और वीवीपीएटी पर होने वाला ख़र्च शामिल है. भारत के ही पड़ोसी देश पाकिस्तान में पिछले आम चुनाव में क़रीब 1.75 डॉलर प्रति वोटर ख़र्च हुआ था.
ओपी रावत के मुताबिक़ जिन देशों के चुनावी ख़र्च के आंकड़े उपलब्ध हैं, उनमें केन्या में यह ख़र्च 25 डॉलर प्रति वोटर होता है, जो दुनिया में सबसे महंगे आम चुनावों में से शामिल है. भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी कहते हैं, “भारत में चुनाव कराने में क़रीब चार हजार करोड़ का ख़र्च होता है, जो कि बहुत बड़ा नहीं है.”
“इसके अलावा राजनीतिक दलों के क़रीब 60 हज़ार करोड़ के ख़र्च की बात है तो यह अच्छा है. इससे नेताओं और राजनीतिक दलों के पैसे ग़रीबों के पास पहुंचते हैं.”
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी के मुताबिक
भारत में बदलते समय में चुनावों में तकनीक का इस्तेमाल भी बढ़ा है. इसके बावजूद भी चुनावों के दौरान बैनर-पोस्टर और प्रचार सामग्री बनाने, चिपकाने वालों से लेकर ऑटो और रिक्शेवाले तक को काम मिलता है. इस तरह से आम लोगों और उनकी अर्थव्यवस्था के लिए चुनाव कई मायनों में अच्छा भी माना जाता है.
एसवाई क़ुरैशी के मुताबिक़ अगर लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराए जाएं तो इसके लिए मौजूदा संख्या से तीन गुना ज़्यादा ईवीएम की ज़रूरत पड़ेगी.
भारत में इस्तेमाल होने वाले एक ईवीएम की क़ीमत क़रीब 17 हज़ार रुपये और एक वीवीपीएटी की क़ीमत भी क़रीब इतनी ही है. ऐसे में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के लिए क़रीब 15 लाख़ नए ईवीएम और वीवीपीएटी ख़रीदने की ज़रूरत पड़ सकती है..