बिहार विधान परिषद के खाली हुए एक सीट को लेकर JDU उम्मीदवार ललन प्रसाद (JDU MLC Candidate) ने गुरुवार को नामांकन किया है. विधानसभा के अंतर्गत हुए नामांकन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, लघु जल संसाधन मंत्री संतोष सुमन सहित कई नेता मौजूद रहे. तमाम बड़े नेताओं की मौजूदगी में ललन प्रसाद ने अपना नामांकन किया.
नामांकन के बाद उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समता पार्टी के एक कार्यकर्ता, जो करीब 30 वर्षों से जदयू में काम करते रहे हैं. उनका नाम प्रस्तावित किया है. हम लोग सभी ने उनके नाम का समर्थन किया है. NDA की आपसी सहमति से ललन प्रसाद को चुना गया है.
23 जनवरी को होगी वोटिंग
इस सीट के लिए आगामी 23 जनवरी को विधानसभा में वोटिंग होना है. उसी दिन नतीजा की घोषणा भी हो जाएगी. नामांकन की प्रक्रिया 6 जनवरी से ही शुरू है, जिसकी अंतिम तारीख 13 जनवरी है. आंकड़ों की अगर बात करें तो NDA के पास वह संख्या बल मौजूद है, जिसके बल पर ललन प्रसाद की जीत तय मानी जा रही है. हालांकि अब तक RJD की तरफ से किसी प्रत्याशी की घोषणा नहीं की गई है. अगर RJD कोई प्रत्याशी नहीं उतारती है तो ललन प्रसाद निर्विरोध रूप से चुनाव जीतेंगे.
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मनीष वर्मा को इस सीट के लिए मजबूत उम्मीदवार माना जाता था
पूर्व सीएम राबड़ी देवी के मुंहबोले भाई सुनील सिंह की सदस्यता समाप्त होने के बाद खाली हुई सीट पर उपचुनाव होना है. यह सीट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में JDU के खाते में गई है. चर्चा थी कि लोकसभा चुनाव में जी तोड़ मेहनत करने वाले पूर्व आईएएस अधिकारी मनीष वर्मा के लिए इस सीट के लिए मजबूत उम्मीदवार माने जा रहे थे.
लेकिन, जदयू ने उन्हें बड़ा झटका दे दिया. यह सीट शेखुपरा निवासी जदयू नेता ललन प्रसाद (JDU MLC Candidate) को दे दी. ललन प्रसाद (JDU MLC Candidate) धानुक जाति से आते हैं. इस मामले के बाद जदयू के अंदरखाने से यह खबर निकलकर सामने आ रही है कि मनीष वर्मा का विरोध पार्टी कुछ कुछ शीर्ष नेताओं ने ही कर दिया. इसलिए उन्हें यह सीट नहीं मिली. वहीं मनीष वर्मा के समर्थकों ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पार्टी ने उनके लिए कुछ बेहतर सोच रखा है.
सुनील सिंह के सदस्यता जाने के बाद खाली हुई थी सीट
विधान परिषद की आचार समिति ने सुनील सिंह पर कार्रवाई की अनुशंसा की थी. इसमें कहा गया था कि वो लगातार सदन के अंदर 4 बैठकों में शामिल नहीं हुए हैं. 5वीं बैठक में वो आए, लेकिन अपने ऊपर लगे आरोपों पर कोई जवाब नहीं दिया. इसके साथ ही अनुशंसा पत्र में कहा गया है कि वे लगातार सदन के नेता, यानी मुख्यमंत्री के खिलाफ बयानबाजी करते आ रहे हैं.
उनका व्यवहार भी असंसदीय और लोकतंत्र के खिलाफ है. ऐसे में क्यों ना विधान परिषद से उनकी सदस्यता खत्म कर दी जाए. इसके जवाब में सुनील कुमार सिंह ने कहा था कि मेरे खिलाफ प्रतिवेदन तैयार करने में उन लोगों ने काफी मेहनत की है. सदन में गरीबों, किसानों, वंचितों, बेरोजगारों की आवाज नहीं उठ सके, इसलिए यह किया गया है.