हाथी घोड़े, तोप, तलवारें फौज तो तेरी सारी है, पर जंजीर में जकड़ा राजा मेरा अब भी सब पे भारी है… फिल्म छावा (Chhaava Movie) में कवि कलश की कही ये लाइनें वह दृश्य सामने ले आती है कि क्या खौफ रहा होगा, जब मुगल शासक औरंगजेब की सल्तनत में बंदी बनकर खड़े रहने के बावजूद छत्रपति संभाजी महाराज ने मुगलों की नींव हिला दी थी. निर्देशक लक्ष्मण उतेकर निर्देशित फिल्म छावा उसी शूरवीर मराठा योद्धा की कहानी को पर्दे पर लेकर आती है. फिल्म लेखक शिवाजी सावंत के मराठी उपन्यास छावा पर आधारित है.
छावा की कहानी खड़े कर देगी रोंगटे?
छावा फिल्म (Chhaava Movie) की कहानी शुरू होती है, औरंगजेब (अक्षय खन्ना) को मिलने वाली उस खबर के साथ जिसमें पता चलता है कि मराठा साम्राज्य के संस्थापक और योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई है. औरंगजेब को लगता है कि दक्कन में अब उसका सामना करने वाला कोई नहीं बचा है.
लेकिन उसी दौरान मुगलों के गढ़ बुरहानपुर में छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे छत्रपति संभाजी महाराज (विक्की कौशल) अपनी सेना के साथ हमला कर देते हैं. अपने पिता की ही तरह पराक्रमी योद्धा संभाजी राजे को लोग छावा यानी शेर का बच्चा भी कहकर बुलाते हैं. औरंगजेब इस हमले से तिलमिला जाता है. वह नौ वर्षों तक छावा को घेरने के कई प्रयास करता है, जिसमें उसे मराठा योद्धा धूल चटा देते हैं.
मराठा समाज के वीर योद्धाओं का जूनुन दिखाने में हुए सफल
मिमी, लुका छुपी, जरा हटके जरा बचके फिल्मों के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर की छावा पहली ऐतिहासिक फिल्म है. अपने लेखकों के साथ मिलकर किताब को स्क्रीनप्ले में परिवर्तित करने के साथ ही लक्ष्मण की अपनी रिसर्च भी मजबूत है.
वह मराठा साम्राज्य के वीर योद्धाओं का हिंदू स्वराज्य के प्रति जुनून और समर्पण को दर्शाने में सफल हुए हैं. लेकिन मध्यातंर से पहले कुछ पात्रों से परिचित कराने में चूक गए हैं. शिवाजी महाराज की दूसरी पत्नी सोयराबाई भोसले के प्रकरण को भी उन्होंने जल्दबाजी में निपटाया है. हालांकि क्लाइमेक्स दमदार है, जिसमें असीम दर्द है, तो वहीं गर्व का अहसास भी है भारत की धरती पर ऐसे वीर सपूत पैदा हुए हैं.
संवादों में मराठी भाषा का उपयोग न होना थोड़ा दिल तोड़ता है
छावा (Chhaava Movie) में एआर रहमान का संगीत, इरशाद कामिल के लिखे गीत कर्णप्रिय हैं, लेकिन ढोल-ताशे अगर होते, तो महाराष्ट्र की मिट्टी से जुड़ना और आसान हो जाता. संवादों में मराठी भाषा का पुट न होना भी अखरता है.
हर कठिन परिस्थिति में बाल संभाजी महाराज को शिवाजी महाराज की आवाज से मार्गदर्शन मिलने वाले दृश्य दिल को छूते हैं. औरंगजेब की सल्तनत में लहुलुहान होकर बेड़ियों में जकड़े संभाजी महाराज और कवि कलश के बीच कविताओं की प्रतियोगिता याद रह जाती है.
ये भी पढ़ें..
- Sanam Teri Kasam OTT : वैलेंटाइन डे पर घर बैठे फ्री में देंखे सनम तेरी कसम, इस लव स्टोरी मूवी ने अब तक छाप दिए इतने रुपये
- Ashram 3 Part 2 : पॉपुलर वेब सीरीज आश्रम 3 का धांसू टीजर हुआ जारी, जाने कब लौटेंगे बाबा निराला?
छत्रपति संभाजी महाराज के किरदार के साथ विक्की ने किया न्याय
विक्की कौशल ने कहा था कि उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि वह छत्रपति संभाजी महाराज कैसे बन सकते हैं. उस चुनौती को वह पूरी जिम्मेदारी के साथ पूरा करते हैं. कुशल योद्धा की तरह दुश्मनों को खदेड़ने से लेकर मराठाओं में स्वराज्य के प्रति अभिमान बढ़ाकर जोश भरने और क्लाइमेक्स में लहुलुहान, बेड़ियों में जकड़े होने, आंखें, जीभ और नाखून निकालने के बावजूद सर ऊंचा करके मुगलों के सामने खड़े रहने वाले वीर मराठा योद्धा संभाजी महाराज के हर एक पल को विक्की ने जिया है.
औरंगजेब के रोल में अक्षय खन्ना की दिखी दमदार भूमिका
बेड़ियों में जकड़कर जब उन्हें खींचा जाता है, तो वाकई में लगता है, जैसे किसी शेर को पकड़ लिया है, जिसे नियंत्रण में लाना नामुमकिन है. रश्मिका मंदाना संभाजी महाराज की पत्नी येसूबाई की भूमिका में जमती हैं. इस बार उनके संवादों में दक्षिण भारतीय भाषा का असर कम दिखता है.
कम संवादों में औरंगजेब के रोल में अक्षय खन्ना साबित करते हैं कि वह हर तरह का रोल करने का मादा रखते हैं. कवि कलश की भूमिका में विनीत कुमार सिंह कवि से योद्धा बनने के सफर को जीते हैं. हालांकि आशुतोष राणा, डायना पेंटी और दिव्या दत्ता जैसे कलाकारों का सही प्रयोग लक्ष्मण नहीं कर पाए हैं. उनका पात्र अधूरा सा लगता है.