बसपा सुप्रीमो मायावती के ऐलान ने बिहार की राजनीति को गरमा दिया है. उन्होंने साफ साफ कहा कि BSP इस बार बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों (Bihar Assembly Elections) पर अकेले चुनाव लड़ेगी. बिहार में मजबूत प्रत्याशियों के चयन के लिए नेशनल को-ऑर्डिनेटर रामजी गौतम और बिहार प्रभारी अनिल कुमार को सौंपी गई है.
बुरे दौर से गुजर रही बसपा का बिहार एक्सपेरिमेंट
यूपी जैसे राज्य, जहां से बीएसपी उभरी, वहां उसका अब सिर्फ एक विधायक है. लोकसभा में कोई नुमाइंदगी नहीं है. 2024 लोकसभा में पूरे देश में बसपा सिर्फ 2 फीसदी वोट ही पा सकी. यूपी में उसका वोट शेयर गिरकर 9.35 फीसदी रह गया.
लोकसभा के बाद महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी बसपा खाता नहीं खोल पाई. अब चार महीने बाद बिहार में चुनाव होने हैं. इस चुनाव में बीएसपी अपने खोए हुवे अस्तित्व को वापस लाने के लिए बिहार में अपनी जमीन तलाश रही है. चुकी बसपा वर्तमान में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. ऐसे में राष्ट्रीय पार्टी बने रहने के लिए बिहार विधानसभा का चुनाव (Bihar Assembly Elections) BSP के लिए अहम है.
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बिहार के इन सीटों पर बीएसपी की पैनी नजर
BSP इस बार बिहार विधानसभा (Bihar Assembly Elections) के चुनावी मैदान में पूरी ताकत से उतरने की तैयारी में जुटी है. उसकी नजर खासतौर पर बिहार के पश्चिमी हिस्से, यानी यूपी बॉर्डर से सटे जिलों (बक्सर, कैमूर, रोहतास) पर है. सीमावर्ती जिलों में बसपा का मजबूत कैडर है. जहां उनका परंपरागत दलित वोट बैंक पहले से मौजूद है. यहां की 25-30 सीटें बसपा के टारगेट पर हैं.
बिहार में दलित 16 फीसदी के लगभग हैं. इसमें जाटव करीब 4.50 फीसदी हैं. बसपा की इस वोटबैंक पर मजबूत पकड़ है. पिछले वीस चुनाव में 2010 और 2015 को छोड़ दें, तो बसपा अपना यहा खाता खोलने में सफल भी रही है.
पिछड़ा, दलित, और अल्पसंख्यक पर टारगेट
बसपा बिहार में पीडीए यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक की पिच पर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी है. बसपा ने बिहार का प्रदेश प्रभारी अनिल चौधरी को बनाया है, जो कुर्मी जाति से आते हैं. बिहार में कुर्मी 4 फीसदी से अधिक हैं. इसके अलावा कोइरी भी बसपा के कोर एजेंडे में शामिल हैं.
अभी तक कुर्मी, कोइरी जदयू के वोटर माने जाते रहे हैं. लेकिन, बसपा इस बार बिहार में बड़ी संख्या में कुर्मी सहित इन जातियों के प्रत्याशी उतारने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है. इसके अलावा मुसलमान करीब 17 फीसदी हैं. मायावती मुस्लिमों को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने जा रही हैं.
मतलब साफ है कि बसपा की नजर बिहार में 30 फीसदी वोटरों को साधने पर है. ऐसे में बहुजन समाज पार्टी की यह रणनीत कारगर हुई तो पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक का जो वोट अब तक एनडीए और महागठबंधन के खाते में जाते रहे हैं अब इनमे सेंधमारी की उम्मीद हैं.