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What Is Delimitation : उपेन्द्र कुशवाहा का विक्रमगंज में हल्ला बोल महारैली, जानिए क्यों परिसीमन को लकेर पूरे देश में मचा है बवाल

रविवार को रोहतास जिले के विक्रमगंज के इंटर कॉलेज में राष्ट्रीय लोक मोर्चा की ओर से “संवैधानिक अधिकार परिसीमन सुधार (Delimitation) रैली बुलाई गई थी. उन्हे सुनने के लिए इतनी भीड़ जुटी की यह रैली महारैली में बदल गई. उपेन्द्र कुशवाहा ने इस महारैली में परिसीमन को लेकर अपने कार्यकर्ताओ को संबोधित किया. उन्होंने बताया कि परिसीमन में सुधार नहीं होने से बिहार को बहुत नुकसान हुवा हैं. लेकिन ये परिसीमन (Delimitation) है क्या (What Is Delimitation) इसके बारे में हम आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार देश में हर 10 साल पर जनगणना के हिसाब से परिसीमन (What Is Delimitation) किया जाना होता हैं. जिसके लिए परिसीमन आयोग का गठन किया जाता हैं और यह आयोग आबादी के हिसाब से राज्यों के लोकसभा और विधानसभा के सीटों की संख्या तय करती हैं.

देश में कब कब हुवा परिसीमन का विस्तार 

अभी तक देश में 1951, 1961, 1971 की जनसंख्या के आधार पर परिसीमन कर लोकसभा की सीटों को निर्धारित किया गया है. ये कारवां 1973 तक चला. मगर 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने परिसीमन को 25 वर्षों के लिए फ्रीज कर दिया. उस दौरान देश में इमरजेंसी थी. और इसका हवाला देते हुवे पुनः यह रोक अगले 25 साल तक के लिए बढ़ा दी गई.

हालांकि जनगणना हर 10 साल पर होता रहा. मगर परिसीमन (Delimitation) में सुधार 50 सालों से रुका हुवा हैं. अब यह अवधि साल 2026 में पूरी होने जा रही है. ऐसे में एक बार फिर से आबादी के हिसाब से तय किया जाएगा कि किस राज्य में कितनी लोकसभा और विधानसभा की सीटे होगी.

देश में अभी 543 लोकसभा की सीटें हैं

भारत को 1947 में आजादी मिली. तब आजाद भारत में पहली बार साल 1951 में परिसीमन हुवा था. तब भारत में आबादी के अनुसार 494 लोकसभा सीटें तय हुई थी. वही दूसरी बार जब 1961 में परिसीमन हुवा तब 522 और तीसरी बार जब 1971 में परिसीमन हुवा तब आबादी के अनुसार 543 लोकसभा सीटें तय की गई. परिसीमन में जब बदलाव हुवा तब हर लोकसभा सीट पर 1951 में औसतन आबादी क्रमशः 7.3 लाख, 1961 में 8.4 लाख और 1971 में 10.1 लाख के करीब रखी गई थी. यानी जब अंतिम परिसीमन हुवा था तब मात्र 10 लाख की आबादी पर एक सांसद हुवा करते थे.


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आबादी के हिसाब से नहीं हुवा सीटों का विस्तार

आपको बता दें की आज बिहार में ऐसे बहुत से जिले है जिनकी आबादी 20 लाख के पार है. उदाहरण के तौर पटना जिले की बात करते है इसकी आबादी लगभग 58 लाख 38 हजार 465 है. और दो संसदीय क्षेत्र पाटलिपुत्र और पटना साहिब हैं. करीब 29 लाख की आबादी पर एक ही संसदीय सीट है. देखा जाए तो आज 50 साल बीत गए और आबादी अपने शिखर तक पहुच गई. मगर सीटों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई.

परिसीमन नहीं होने से किसे हो रहा है बड़ा नुकसान

बिहार सहित उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों को लोकसभा सीटों के मामले में बहुत नुकसान हो रहा है. चुकी 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने परिसीमन को 25 सालों के लिए फ्रीज नहीं किया होता तो आज बिहार में लोकसभा की सीटों की संख्या 40 से बढ़कर लगभग 60 सीटें होती.

आज दक्षिण भारत में लगभग 21 लाख आबादी पर एक लोकसभा सीट है. वहीं, उत्तर भारत में लगभग 31 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट है. ऐसे में अभी हर सांसद को सलाना 5 करोड़ रुपए की सांसद निधि मिलती है. दक्षिण भारत में यही फंड 1 संसद सदस्य को 20 लाख आबादी के लिए मिल रहा है, वहीं उत्तर भारत के संसद सदस्य को लगभग 28 लाख लोगों पर वही फंड मिलता है.

दक्षिण भारत के राज्य परिसीमन सुधार के खिलाफ

राष्ट्रीय लोक मोर्चा सह राज्य सभा सांसद उपेन्द्र कुशवाहा ने परिसीमन सुधार का मुद्दा उठाया हैं. जो वर्तमान में पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुवा हैं. वही दक्षिण भारत के राज्य परिसीमन सुधार के खिलाफ हैं. हालांकि 2026 में परिसीमन में सुधार होना हैं. ऐसे में माना जा रहा हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उपेन्द्र कुशवाहा का यह मुद्दा विपक्ष के लिए न्यूक्लियर बॉम्ब की तरह है.

उपेन्द्र कुशवाहा ने परिसीमन को लेकर कहा कि यह व्यवस्था बिहार सहित तमाम उत्तर भारतीय राज्यों का देश की संसद में हमारे प्रतिनिधित्व को कम करता है या यह कह सकते हैं कि जो संविधान की मूल भावना 1 व्यक्ति, 1 वोट, 1 मूल्य के साथ छलावा है. मौजूदा आबादी के आधार पर परिसीमन नहीं होने के कारण उत्तर भारत पिछले 50 वर्षों से अपने इस अधिकार से वंचित हैं.

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