National Politics: हाल के समय में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के साथ अपने संबंधों में तनाव आने के कारण बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी गुट से थोड़ा दूर होकर और नई राजनीतिक जमीन की तलाश में दिखाई दिए. सोमवार को बिहार की जाति जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद एक बार फिर नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में केंद्र में आ गए. बिहार में जातिगत जनगणना के नतीजों से नीतीश को अत्यंत पिछड़ा वर्ग ( EBC), गैर-यादव अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और महादलित वोट बैंक के चैंपियन के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद मिलने की उम्मीद है, जिसे कोई भी पार्टी या गठबंधन अगले साल के लोकसभा चुनाव में नजरअंदाज नहीं कर सकता है.
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बिहार की जाति जनगणना आंकड़ों के मुताबिक 36.01 फीसदी आबादी के साथ ईबीसी सबसे बड़ा वोट बैंक है, इसके बाद 27.12 फीसदी ओबीसी हैं, जिनमें से 14.26 फीसदी यादव हैं, जो सबसे बड़ा सामाजिक समूह है. जाति जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक दलित बिहार की आबादी का 19.65 फीसदी से ज्यादा हैं, जबकि 2011 की जनगणना में यह 15 फीसदी दर्ज किया गया था.
ईबीसी और ओबीसी के डेटा में पसमांदा मुसलमान भी शामिल हैं. विशेष रूप से यह नीतीश की ही पहल थी, जिन्होंने अपनी जाति कुर्मियों की कम संख्या की भरपाई के लिए ईबीसी और महादलितों को राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण बनाया. जिनको जाति जनगणना में आबादी का केवल लगभग 3 फीसदी माना गया है.
सोशल इंजीनियरिंग ने नीतीश को एक दशक….
अपने पहले कार्यकाल में ही हासिल की गई इस सोशल इंजीनियरिंग ने नीतीश को एक दशक से अधिक समय तक राजनीतिक (National Politics) रूप से अच्छी स्थिति में बनाए रखा. मगर अब उनका सामाजिक आधार एक बार फिर खिसकने के संकेत दे रहा है. जाति जनगणना को उनके राजनीतिक आधार को एकजुट रखने के लिए गोंद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. बताया जाता है कि जून में पटना में हुई ‘इंडिया’ गठबंधन की पहली बैठक के दौरान नीतीश कुमार ने कहा था कि जाति जनगणना गठबंधन के प्रमुख एजेंडे में से एक होनी चाहिए. उन्होंने विपक्ष से यह घोषणा करने के लिए कहा कि अगर ‘इंडिया’ गठबंधन की लोकसभा चुनाव में जीत होती है, तो वह जाति जनगणना कराएगा.
जनता दल (यूनाइटेड) के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक नीतीश कुमार की सलाह पर उस समय तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने आपत्ति जताई. आखिरकार शरद पवार के घर पिछले महीने हुई समन्वय बैठक में इसे कबूल कर लिया गया. राहुल गांधी आज देश भर में घूम-घूम कर जाति जनगणना के बारे में बोल रहे हैं.
अदालती लड़ाई लड़ी और इसे पूरा किया
मगर नीतीश कुमार ने इसे तीन साल पहले उठाया, इस पर कार्रवाई की, अदालती लड़ाई लड़ी और इसे पूरा किया. अत्यंत पिछड़ी जातियों और गैर-यादव ओबीसी के चैंपियन के रूप में यह उन्हें हिंदी पट्टी के अन्य नेताओं से आगे रखता है. यह संदेश न केवल बिहार पर असर डालने वाला है, बल्कि 2024 के चुनावों के संदर्भ में यूपी तक भी पहुंचेगा.