भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और देश के गृह मंत्री अमित शाह सालभर में 7-8 बार बिहार (Bihar Politics) आ चुके हैं. पिछले साल नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़कर महागठबंधन के साथ सरकार बना ली थी. बीजेपी के लिए ये बहुत बड़ा सेटबैक था. पार्टी इससे उबरने की लगातार कोशिश कर रही है. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार पर अमित शाह की पैनी नजर है. यही कारण माना जा रहा है कि वो लगातार बिहार पहुंच रहे हैं.
6 सांसदों का घाटा कैसे होगा पूरा ?
सीमांचल और मिथिलांचल के बाद रविवार को अमित शाह समाजवादियों के गढ़ माने जाने वाले मुजफ्फरपुर पहुंचे, जहां विरोधियों को कई मोर्चे पर घेर गए. बिहार में जातीय सर्वेक्षण के बाद पहली बार पहुंचे शाह ने जहां यादव और मुस्लिमों की संख्या बढ़ाने का आरोप लगाते हुए अति पिछड़ों को साधने की कोशिश की.
इस दौरान उन्होंने नीतीश कुमार पर जोरदार हमला बोलकर एक बार फिर साफ कर दिया कि उनका भाजपा के साथ आना अब आसान नहीं है. पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए को 40 में से 39 सीटें मिली थी. इसमें कोई शक नहीं है कि जदयू के अलग होने के बाद भाजपा को 16 सांसदों का घाटा हुआ है. ऐसे में इस घाटे को पाटने के लिए भाजपा के थिंक टैंक की नजर बिहार के उन क्षेत्रों पर है, जहां जदयू मजबूत है.
ये भी पढ़ें : Salary Hike: दिवाली से पहले राज्य कर्मियों की बढ़ेगी सैलरी, सरकार ने 4 फीसदी बढ़ाया महंगाई भत्ता
2024 का चुनाव बीजेपी से लिए बिल्कुल अलग
बिहार के (Bihar Politics) मुजफ्फरपुर, नालंदा, मुंगेर जैसे इलाके सामजवादियों के गढ़ माने जाते हैं. फिलहाल मुजफ्फरपुर से भाजपा का सांसद है. इस सीट को भाजपा खोना नहीं चाहेगी बल्कि नालंदा और मुंगेर की सीट पर भी भाजपा की नजर है। वैसे, गौर से देखें तो पिछले लोकसभा चुनाव से अलग प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य होगा. भाजपा जदयू से अलग चुनाव मैदान में होगी.
अमित शाह ने अपने संबोधन में कहा कि ‘इंडीया अलायंस’ वाले नारा दे रहे हैं कि जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. मैं नीतीश-लालू की जोड़ी को चुनौती देता हूं कि सर्वाधिक जनसंख्या वाले किसी अति पिछड़े को मुख्यमंत्री बनाकर दिखाएं. इससे शाह ने अति पिछड़ों को साधने की कोशिश की। इस दौरान उन्होंने राम मंदिर बनाने की बातकर हिंदुत्व के एजेंडे को भी हवा दे दी है.