बिहार में लगभग साल के अंत में विधानसभा (Bihar Vidhansabha) के चुनाव होने है. ऐसे में NDA में शामिल उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) और बीजेपी के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी से NDA को बहुत उम्मीद हैं. चुकी एक तरफ जहा काराकाट लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी उपेन्द्र कुशवाहा को भाजपा ने राज्यसभा भेजा है. वही सम्राट चौधरी को डिप्टी सीएम भी बनाया हैं. राजनीति को करीब से समझने वाले राजनीतिक विश्लेषक सुनिल प्रियदर्शी का मानना है कि भाजपा द्वारा इन दोनों नेताओ को प्रमोट करने की बस एक ही वजह है कि बिहार में सभी कुशवाहा वोटरो को एनडीए के पक्ष में रख सके.
उपेन्द्र कुशवाहा के कोर वोटरों में होगी सेंधमारी
विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Vidhansabha) के होने में लगभग अभी 6 से 7 महीने बाकी है, ऐसे में RLM के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) अपने वोटरों को समेटने में जुट चुके हैं. उन्होंने हाल ही में अपने दल के लोगों के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एनडीए के समक्ष अपने 14 सूत्री प्रस्ताव के साथ साथ 25 सीटों की भी मांग रखी है. उनकी ये मांग एक तरह से अपनी शक्ति प्रदर्शन या फिर कहे अपनी भागीदारी की तरफ भी इशारा करती हैं.
वही दूसर तरफ बिहार में बदलाव की मशाल लेकर सूबे के हर जिले में भ्रमण कर रहे निशिकांत सिन्हा की संवाद यात्रा में जुटी भीड़ ये बता रही है कि उपेन्द्र कुशवाहा के शाख पर बट्टा लगने वाला हैं. हालांकि निशिकांत सिन्हा का बिहार में बदलाव का स्लोगन भले ही मजबूत हो सकता हैं, मगर उनके पास कुछ ठोस मुद्दे नहीं है जिनसे जनता प्रभावित हो सके.
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निशिकांत सिन्हा और उपेन्द्र कुशवाहा की कमजोर और मजबूत कड़ी
बिहार यूथ आइकॉन के नाम से मशहूर निशिकांत सिन्हा की एक प्रभावशाली छबि हैं. सिन्हा अभी दल का गठन नहीं किये हैं मगर 25 मई 2025 को गांधी मैदान पटना से दल की घोषणा करने वाले है. उससे पहले बिहार दौरे पर है वो. इनके सभा में लगभग सभी जगहों पर कुशवाहा वोटरों की भीड़ देखने को मिल रही हैं.
सिन्हा की मजबूत कड़ी ये है कि वे अपने भाषण में सम्राट अशोक महान और जगदेव बाबू के नाम को काफी प्राथमिकता दे रहे हैं. कमजोर कड़ी ये है कि उन मुद्दों पर बात नहीं कर रहे है जिनको लेकर वह बिहार में बदलाव की बात कर सके. हालंकी उनके भाषणों में पलायन और बेरोजगारी का एक गंभीर मुद्दा जरूर है, मगर इस मुद्दों को पहले ही जन सुराज नेता ने हैक कर लिया हैं.
उपेन्द्र कुशवाहा की कमजोर कड़ी
बात करे उपेन्द्र कुशवाहा की तो वे अपने जनवादी मुद्दों के लिए पूरे देश मशहूर है. मगर सबसे पहले लोगों के जेहन उनकी कमजोर कड़ी ही सामने दिखती है. और वो हैं उनकी रलोसपा को जेडीयू में विलय करना फिर अलग होना और एक नई पार्टी बनाकर फिर से एनडीए में शामिल होना. राजनीति में स्थिरता मायने रखती है मगर कुशवाहा वोटरों को उन्मे अस्थिरता दिखती हैं. उपेन्द्र कुशवाहा पिछले बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Vidhansabha) में कई सहोयोगी दलों के साथ चुनाव लड़े थे. और वोट प्रतिशत भी काफी अच्छा था. उसके वावजूद भी कुशवाहा ने पार्टी को विलय कर दिया. जिससे कार्यकर्ताओ में काफी निराशा दिखी.
उपेन्द्र कुशवाहा की मजबूत कड़ी
तमाम उलट फेर के बाद एक बार फिर से उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने नई पार्टी (RLM) बनाई और अपने आपको स्टैंड किया. एनडीए के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा. सीट नहीं निकाल पाए, लेकिन इस चुनाव में उपेन्द्र कुशवाहा ने अपने खोई हुई हैसियत जरूर वापस ले ली. और फिर से कुशवाहा वोटरों का उनका साथ मिल गया.
एक बार फिर से उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने बिहार की राजनीति में अपना मास्टर स्ट्रोक चाल चली हैं, हाल ही में उन्होंने एनडीए को अपनी 14 सूत्री प्रस्ताव को रखा हैं. जिनमे मुख्य रूप से जो कुशवाहा वोटरों को आकर्षित करती हैं उनमें…..
- पटना का नाम पाटलिपुत्र,
- सम्राट अशोक की जयंती पर बिहार की तरह पूरे देश में अवकाश
- बोधगया के मंदिर अधिनियम में संशोधन करना शामिल हैं.
उपरोक्त मांगों पर सहमति मिले या ना मिले मगर बिहार विधानसभा चुनाव में ये ऐसे मुद्दे जरूर है जो निशिकांत सिन्हा हो या सम्राट चौधरी हो उन्हे पटखनी देने के लिए काफी हैं.