जगदेव बाबु: पटना, आज भी जब किसी वंचित तबके के लिए आवाज उठाने की बात होती है, तो अमर शहीद बाबु जगदेव प्रसाद का नाम पहले लिया जाता है. अमर शहीद बाबू जगदेव प्रसाद भारत के बिहार प्रान्त में जन्मे एक क्रन्तिकारी राजनेता थे. बाद में इन्हें ‘भारत लेनिन’ के नाम से भी जाना गया. इन्होने एक बेहतर समाज को गढने में अपनी पूरी जी जान लगा दी.
जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को जहानाबाद के कुर्था प्रखंड कुरहारी ग्राम में कोइरी समुदाय के परिवार में हुआ था. इनके पिता प्रयाग नारायण पास के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे. तथा माता रासकली गृहणी थीं. अपने पिता के मार्गदर्शन में बालक जगदेव ने मिडिल की परीक्षा पास की. हाईस्कूल के लिए जहानाबाद चले गए. निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा होने के कारण जगदेव बाबू की प्रवृत्ति शुरू से ही संघर्षशील, जुझारू तथा बचपन से ही विद्रोही स्वाभाव’ की रही थी.
1946 में जगदेव बाबू मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करते है उसी के बाद उनके पिता की तबीयत काफी खराब हो जाती है. और काफी मिन्नतों एव दवाइयों के बाद भी इनके पिता की मृत्यु हो जाती है और वे अपने पिता की अर्थी पर घर में जितने भी देवी देवता की मूर्ति व तस्वीरे होती है सभी को रख कर जला देते है. बिहार की सरजमी पर जाती व्यवस्था के नाम पर अगड़ी- पिछड़ी जातियों के जुल्म व अत्याचार के नाम पर भारत लेनिन जगदेव बाबू का आंदोलन काफी सराहनीय रहा.
बचपन से ही लड़ाकू प्रवृति के थे जगदेव बाबू:
बिहार में पचकठिया प्रथा का प्रचलन था जिसके तहत जम्मींदार का महावत हाथी को लेकर पांच कठ्ठा फसल चराता था, एक बार क्षेत्रीय जमींदार का महावत हाथी लेकर जगदेव बाबू के खेत में धान की फसल चराने जाता है तब जगदेव बाबू अपने साथियों के साथ उसका विरोध करते है जिसके परिणाम स्वरूप महावत को वापस जाना पड़ता है.
उस समय स्वतन्त्रता का आंदोलन अपने चरम पर पर था. बिहार में रेल की पटरी उखाड़ने एवं सरकारी डाक बंगले को जलाने में स्वतंत्रता सेनानी पूरी मनोयोग से लगे रहते हैं. जगदेव बाबू के स्वतन्त्रता आंदोलन में सहयोग के साथ ही शिक्षा ग्रहण करने की प्रबल इच्छा के बाबजूद परिवार की जिम्मेदारी होने से पढ़ने में दिक्कतें आ रही थी.
एक दिन इनकी मां ने इनको 11 रुपया देकर पटना भेजा पढ़ने के लिए किंतु जगदेव बाबू उन पैसों से पढ़ नही सके. पटना के गांधी पार्क में बैठ कर सोच रहे है की तभी बी एन कालेज के माली से इनकी मुलाकात होती है और माली की सहायता से इनका एड्मिसन होता है. फिर भी आर्थिक संकट आड़े आ रही थी तो ट्यूसन पढ़ा कर एक चपरासी के क्वाटर के बरामदे में रह कर पढ़ाई करने लगे. बाद में चन्द्रदेव प्रसाद वर्मा ने इनकी आर्थिक स्थिति को देखते हुए अपने कमरे में इन्हें रखा.
जहाँ इन्हें कम समय मे विभिन्न विचारकों को पढ़ने व जानने का अवसर मिला तथा भाषण देने का अवसर भी मिला.
इनका मन भाषण देने में लगने लगा और अपने ओजस्वी भाषण के दम पर पूरे कालेज में अपनी धाक जमाने में कामयाब रहे.
जगदेव बाबु: 1950 में स्नातक व 1952 में एम.ए अर्थशास्त्र से उत्तीर्ण हुए
उसके बाद सचिवालय में नौकरी कर ली. किंतु तीन महीने में ही अफसर से विवाद होने के बाद नौकरी छोड़ दी. उसके बाद परैया हाईस्कूल में अध्यापन का कार्य किया शिक्षक होने के साथ साथ सामाजिक गतिविधियों में भी भाग लेते रहे. इसी बीच इन्हें अवसर प्राप्त हुआ सोसलिस्ट पार्टी की पत्रिका जनता के संपादन का और यही पत्रिका के माध्यम से समाज को जागरूक करने में लग गए.
दुर्भाग्य वस उसी वर्ष सोसलिस्ट पार्टी दो भागों में बट गई जगदेव बाबू ने लोहिया का साथ दिया और इन्हें “जनता पार्टी ” से हटना पड़ा. अपनी सोच के चलते लोहिया के नेतृत्व वाली पार्टी के प्रांतीय सचिव बन गए और महंगाई और भ्रटाचार को लेकर पटना में आंदोलन किये जिसमें लाठी चार्ज में बाबू को काफी चोट आई. 1955 में जगदेव बाबू हैदराबाद जाकर अंग्रेजी साप्ताहिक “सिटीजन” एव हिंदी साप्ताहिक “उदय” का संपादन करने लगे और पत्रिका के माध्यम से शोषितों और पिछड़ों की आवाज को उठाने लगे. कई बार इन्हें धमकियां मिली पर उसकी परवाह किये बिना अपने काम में लगे रहे.
1957 में तथा 1962 में चुनाव लड़े किंतु पराजय हाथ लगी:
1967 में सोसलिस्ट पार्टी से अलग हुई जनता पार्टी एक होकर चुनाव लड़े और जगदेव बाबू कुर्था विधानसभा से चुनाव जीत गए. इसके साथ ही बिहार की राजनीति में इनके दखल का दौर प्रारम्भ होता है. कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाने का अवसर प्राप्त होता है किंतु कुछ परिस्थितियों के कारण सरकार नही बन पाती है.
जगदेव बाबू मौके की ताक में लगे रहते है अंततोगत्वा इन्हें मौका मिल ही गया 25 जनवरी 1968 को महामाया सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव में 13 मतों से सरकार गिर जाती है और इसके साथ ही 28 जनवरी को इनके नेतृत्व में सतीश प्रसाद मुख्यमंत्री बनते है. (जगदेव बाबू बिदेश्वरी प्रसाद को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे किंतु उनके पास किसी सदन की सदस्यता न होने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सका)
पहली बैठक में ही 1 फरवरी 1968 को विधान परिषद के सदस्य परमानन्द जी से इस्तीफा दिलाकर विंदेसरी प्रसाद मण्डल जी को विधान परिषद का सदस्य नियुक्त कर तीन दिन बाद ही वी पी मण्डल जी को मुख्यमंत्री बनाया जाता है.
जगदेव बाबू दूसरे नंबर के मंत्री के रूप में कैबिनेट की शपथ लेते है. 18 मार्च 1968 को कांग्रेस के 13 विधायकों के बागी होने के कारण बी पी मण्डल की भी सरकार गिर जाती है.
लोहिया व जगदेव बाबू में वैचारिक मतभेद
33 सूत्रीय मांगों को लेकर लोहिया व जगदेव बाबू में वैचारिक मतभेद उत्तपन्न होते है और जगदेव बाबू शोषित दल बनाते है. 22 मार्च को 1968 को भोला पासवान मुख्यमंत्री बनते है. तीन महीने बाद इनकी भी सरकार गिर जाती है. 9 फरवरी 1969 को बिहार में चुनाव हुआ और शोषित दल चुनाव लड़ता है और सिर्फ 6 सीटे ही जीत पाती है. शोषित दल व कांग्रेस, जनता पार्टी, क्रांति दल व अन्य के सहयोग से सरकार बनती है.
26 फरवरी 1969 को सरदार हरिहर सिंह मुख्यमंत्री बनते है. 20 जून 1969 को हरिहर सिंह की सरकार गिर जाती है. 22 जून 1969 को भोला पासवान पुनः मुख्यमंत्री की शपथ लेते है. बिहार की राजनीति में अस्थिरता का दौर प्रारम्भ करने के साथ साथ अपने ओजस्वी नारो से बिहार की धरती पर भूचाल लाने वाले बाबू के नारे गुजने लगते है.
जगदेव बाबु के नारे
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पुनर्जन्म व भाग्यवाद..इनसे जन्म ब्राह्मणवाद..दस का शासन नब्बे पर…नहीं चलेगा नहीं चलेगा.
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सौ में नब्बे शोषित है..शोषितों ने ललकारा है…धन धरती व राज पाट में…नब्बे भाग हमारा है.
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अगले सावन भादो में…………..गोरी कलाई कादो में.
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उची जाती की क्या पहचान.. गिट बिट बोले करे न काम… नीची जाति की क्या पहचान… करे काम पर सहे अपमान
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जो जमीन को जोते बोय.. वही जमीन का मालिक होय.
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करे धोती वाला..खाय टोपी वाला.. नही चलेगा,नही चलेगा।
जगदेव बाबु का भाषण और मार दी गोली
इस ज्वलंत नारो के साथ हिस्सेदारी व भागेदारी की लड़ाई जगदेवबाबू लड़ते हुए, अगड़ी जातियों के लिए आतंक का पर्याय बनकर 5 सितम्बर 1974 को सत्याग्रह आंदोलन लेकर निर्धारित योजना के अनुरूप करपी से 10 बजे कुर्था पहुचे वहाँ पहले से मौजूद छात्र नौजवान, मजदूर, महिलाएं हाथ में काला झंडा लिए जगदेव बाबू के नारों को लगा रहे थे. वहां उपस्थित डी एस पी ने इन्हें जाने से रोक इस पर इनकी काफी बहस हुई, परंतु जगदेवबाबू मंच पर गए और पुलिस ने लाठियां भांजनी शुरू कर दी.
लोग तीतर बितर हो गए इतने में ही आर.पी.एफ बुला ली गई. जगदेवबाबू अपने सैकड़ो समर्थकों के साथ मंच से बोल रहे थे. उसी समय एक जवान ने जगदेव बाबू को टारगेट कर गोली मारी, पहली गोली बगल से गुजर गई किंतु दूसरी गोली जगदेव बाबू के गले मे जाकर लगी और वो वही गिर गए किंतु जिंदा थे. पुलिस उनको घसीटते हुए ट्रैक्टर पर लादती है और थाने लाती है, जगदेव बाबू पानी के लिए तड़पते रहते है किंतु पानी नहीं दिया जाता है. उनकी लाश को पुलिस प्रशासन गायब करने के फिराक में लग जाती है किंतु बी पी मण्डल व भोला प्रसाद के प्रयास से उनकी लाश को पटना लाया जाता है.
6 सितम्बर को जगदेवबाबू के निर्जीव शरीर को बिधायक क्लब में जनता के दर्शनार्थ रखा गया और 7 सितम्बर को अंतिम संस्कार किया गया. उनकी शव यात्रा में उत्तर प्रदेश व बिहार के नामी गिरामी लोगों का तांता लगा रहा. गांधी मैदान में श्रद्धांजलि सभा होती है. पिछड़ों -शोषितों के मसीहा 5 सितम्बर को अपने शुभ चिंतकों को रोता बिलखता छोड़ कर चल बसे.