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Bihar में छोटी-छोटी पार्टियों को फिर से रिझाने में जुटी बीजेपी, इसी नीतियों पर 2019 में 40 में से 39 सीटो पर जीत हासिल की थी NDA

Bihar की बड़ी पार्टी आरजेडी के नेताओं से सीबीआई की पूछताछ और उनके ठिकानों पर ईडी की तलाशी लगातार सुर्ख़ियों में बनी हुई है. केंद्रीय एजेंसियों की इस कार्रवाई से बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन काफ़ी नाराज़ नज़र आ रहा है. इस मुद्दे पर आरजेडी और जेडीयू दोनों ही दलों के नेता बीजेपी पर एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहे हैं.

दूसरी तरफ़ बीजेपी राज्य में ज़मीनी स्तर पर लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुटी हुई है. हाल ही में पार्टी ने राज्य में ज़िला स्तर पर अपने संगठन में भी बदलाव किया है. इसके अलावा बीजेपी के बड़े नेता लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं. बीजेपी बिहार में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए राज्य की छोटी-छोटी पार्टियों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश में भी नज़र आ रही है.

लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ जेडीयू भी

पिछले सप्ताह Bihar प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल और लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान के बीच की मुलाक़ात को भी इसी नज़रिए से देखा जा रहा है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ जेडीयू भी एनडीए का हिस्सा थी. उस चुनाव में बिहार की 40 में से 39 सीटों पर एनडीए की जीत हुई थी.

बिहार में बीजेपी के लिए साल 2019 के प्रदर्शन को दोहरा पाना आसान नहीं होगा. ख़ासकर किसी बड़ी पार्टी के साथ गठबंधन न होने से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

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छोटी पार्टियों की ताकत

बिहार की सियासत में छोटी पार्टियों में लोक जनशक्ति पार्टी की ताक़त सबसे ज़्यादा मानी जाती है. साल 2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए में शामिल इस पार्टी को 6 सीटों पर जीत मिली थी.

हालांकि पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन के बाद एलजेपी दो गुटों में बंट चुकी है. इसका एक गुट पशुपतिनाथ पारस के नेतृत्व में एनडीए से जुड़ा हुआ है. जबकि दूसरा धड़ा चिराग पासवान के साथ है. चिराग पासवान एनडीए से अलग हैं, लेकिन अब वो भी धीरे-धीरे बीजेपी के क़रीब जाते नज़र आ रहे हैं.

चिराग पासवान ने बीजेपी के लिए प्रचार भी किया था

दिसंबर महीने में Bihar मुज़फ़्फ़रपुर के कुढ़नी में हुए विधानसभा उपचुनाव के दौरान चिराग पासवान ने बीजेपी के लिए प्रचार भी किया था. कई राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि महागठबंधन के पास बिहार में फ़िलहाल क़रीब 45 फ़ीसदी वोट है, जबकि बीजेपी के पास महज़ 24 फ़ीसदी वोट है. वही “चिराग पासवान यानी लोक जनशक्ति पार्टी के 6 फ़ीसदी वोट और 3 फ़ीसदी कुशवाहा वोट जोड़ दें तो भी यह महागठबंधन से काफ़ी पीछे है.”

अगर आरजेडी और जेडीयू सच में सारे मतभेद भुला कर और एकजुट होकर चुनाव लड़ें तो बिहार में बीजेपी का क्या हाल होगा, यह आशंका बीजेपी को हमेशा घेरे रहती है. राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि “बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने बिहार में पार्टी को हमेशा नीतीश कुमार का पिछलग्गू बनाकर ही रखा है. बीजेपी बिहार में कितनी क़ाबिल है यह उसके नेता कभी दिखा ही नहीं पाए हैं.”

 वही अगर छोटे दल बीजेपी के साथ आते हैं

तो बीजेपी अपने पक्ष में माहौल बनाने या महागठबंधन पर सवाल उठाने और आलोचना करवाने में इन दलों का इस्तेमाल कर सकती है. लेकिन इसका एक नुक़सान यह भी हो सकता है कि अगर छोटे दलों ने ज़्यादा बड़ा मुंह खोला या उनकी मांग ज़्यादा बड़ी हुई तो यह एक तनाव भी पैदा कर सकता है.

ऐसा ही कुछ हाल ‘वीआईपी’ के मुकेश सहनी का है. मुकेश सहनी मूल रूप से दरभंगा के रहने वाले हैं. मुकेश सहनी मुंबई फ़िल्म उद्योग से बिहार की राजनीति में आए हैं और उनको उस चकाचौंध का एक फ़ायदा मिला है. सहनी मछुआरा समुदाय से आते हैं और उनका दावा रहा है कि केवल निषाद ही नहीं बल्कि बिंद, बेलदार, तियार, खुलवत, सुराहिया, गोढी, वनपार और केवट समेत क़रीब 20 जातियां-उपजातियां उनके समुदाय का हिस्सा हैं.

वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद के मुताबिक़

मुकेश सहनी की बिरादरी में कई उपजातियां शामिल हैं. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सब सहनी के साथ ही हैं, वो ज़मीनी नेता भी नहीं रहे हैं. लेकिन ये लोग अगर अपने दम पर एक-दो फ़ीसद वोट भी बीजेपी को दिला पाते हैं तो इसका फ़ायदा बीजेपी को होगा.

मुकेश सहनी ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के साथ मिलकर तीन सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि उनकी ‘विकासशील इंसान पार्टी’ को इसमें कोई सफलता नहीं मिली थी. दूसरी तरफ़ साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में वीआईपी के तीन विधायक चुनकर आए थे. लेकिन मार्च 2022 में तीनों ही बीजेपी में शामिल हो गए थे.

2020 के विधानसभा चुनावों में ‘वीआईपी’ उपेंद्र कुशवाहा की तब की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी से ज़्यादा सफल रही थी. आरएलएसपी को उन चुनावों में एक भी सीट नहीं मिली थी.

जीतन राम मांझी ने हाल ही में बयान दिया है

Bihar की बड़ी पार्टी आरजेडी के नेताओं से सीबीआई की पूछताछ और उनके ठिकानों पर ईडी की तलाशी लगातार सुर्ख़ियों में बनी हुई है. केंद्रीय एजेंसियों के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी गया और इसके आसपास के इलाक़े में महादलित समुदाय के बीच असर रखते हैं. मांझी अपने विधायक बेटे संतोष सुमन को बिहार का मुख्यमंत्री बनवाने की महात्वाकांक्षा पाले हुए हैं. इसलिए साझीदार होने के बाद भी मांझी को लेकर महागठबंधन पूरी तरह उन पर भरोसा नहीं करता है.

हालांकि जीतन राम मांझी ने हाल ही में बयान दिया है कि वो नीतीश कुमार को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे, नीतीश ने उन्हें Bihar सीएम बनाया था और यह छोटी बात नहीं है. वहीं जीतन राम मांझी कभी ब्राह्मणों पर तो कभी ‘राम’ पर अपने बयानों से विवाद खड़ा कर चुके हैं. जबकि ‘राम’ बीजेपी की राजनीति का अहम हिस्सा रहे हैं.

ऐसे में बीजेपी जीतन राम मांझी को साथ लाने की कितनी कोशिश कर सकती है, यह भी ग़ौर करने लायक होगा. फिर भी राजनीति में भविष्य में कौन कहां होगा इसका अंदाज़ा लगाना आसान नहीं है.

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