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Samrat Chaudhary : बिहार में महतो जाति को भुनाने में भाजपा का सम्राट कार्ड कितना होगा सफल: क्या ध्वस्त हो जायेगा उपेंद्र कुशवाहा का किला या UP की तरह कठपुतली बनेंगे चौधरी

बिहार भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary ) को बनाया गया. पार्टी ने लेटर जारी कर इसकी जानकारी दी है. इसके पहले संजय जायसवाल बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष थे. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा ने उन्हें यह जिम्मेदारी तब सौंपी है जब बिहार में एक बार फिर से उपेंद्र कुशवाहा का सिक्का जमने लगा हैं.

NDA की सरकार टूटने के बाद बीजेपी लगातार सम्राट चौधरी को प्रमोट कर रही है

 बीजेपी ने सबसे पहले इन्हें विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी. प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) ने कहा कि बिहार में बीजेपी कार्यकर्ताओं का सम्मान बढ़े और प्रदेश में हमारी सरकार बने, इसकी रणनीति पर काम करेंगे. बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इन्हें मंच संचालन की जिम्मेदारी दी गई. अब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. सितंबर में संजय जायसवाल का प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल खत्म हो गया था, लेकिन लगातार 2 विधानसभा उपचुनाव और अमित शाह के दौरे के कारण ये नियुक्ति टल रही थी.

क्या कहती है राबड़ी देवी

सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर पूर्व सीएम राबड़ी देवी ने तंज कसा है. उन्होंने कहा कि बनिया लोग से मन भर गया है. अब महतो से भरना है. बता दें कि इससे पहले संजय जायसवाल के हाथ में बीजेपी की कमान थी. वो वैश्य वर्ग से आते हैं, जबकि सम्राट कुशवाहा समाज से आते हैं.

कभी लालू के लाडले रहे सम्राट

कभी लालू प्रसाद के लाडले रहे, सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) साल 2014 में राजद छोड़कर जदयू में शामिल हुए थे. तब वह नीतीश कुमार के बेहद खास माने जा रहे थे. इतने खास कि पार्टी में शामिल होते ही सम्राट चौधरी को पहले MLC बनाया गया और फिर मंत्री, लेकिन यह सिलसिला ज्यादा दिन नहीं चला.

2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद, नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी और जीतन राम मांझी को बिहार का नया मुख्यमंत्री बना दिया. 2015 तक जीतनराम मांझी और नीतीश कुमार के बीच जबरदस्त दूरियां दिखने लगी और फिर जदयू दो खेमों में बंट गई.

सम्राट चौधरी तब जीतनराम मांझी मंत्रिमंडल में मंत्री थे और उन्होंने मांझी का साथ देना शुरू कर दिया. सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary ) का नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत करने का सिलसिला यहीं से शुरू हो गया. कई सालों तक मांझी खेमे का हिस्सा रहने के बाद सम्राट चौधरी ने 2018 में भाजपा जॉइन कर लिया.

तब भाजपा विपक्ष में थी और बिहार में जदयू-राजद की सरकार थी. सम्राट चौधरी की भाजपा में एंट्री होने की 2 वजहें थीं एक कुशवाहा वोट और दूसरा उनका नीतीश विरोधी होना. भाजपा ने पहले उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया और फिर 2021 में MLC और मंत्री.

कुशवाहा समाज को साधने की कोशिश

5 साल में ही सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया है. इसके पीछे उनका कुशवाहा समाज से आना, बड़ा कारण है. उनके पिता शकुनी चौधरी कुशवाहा समाज के बड़े नेता रहे हैं. कुशवाहा-कुर्मी समाज को साधने के लिए सम्राट चौधरी बीजेपी के लिए तुरूप का पत्ता साबित होंगे. बिहार में कुशवाहा-कुर्मी समाज की आबादी 11 फीसदी है. ऐसे में सम्राट को भाजपा पूरे बिहार में घुमाएगी. 55 साल के सम्राट के एग्रेशन को देखते हुए भी भाजपा ने ये जिम्मेदारी दी है.

बिहार में उपेंद्र कुशवाहा महतो जाति के एकलौते लोकप्रिय नेता हैं

वही अगर देखा जाये तो बिहार में महतो जाति के कई बड़े बड़े दिग्गज नेता है मगर एकाधिकार नेतृत्व करने वाले अकेले उपेंद्र कुशवाहा है. जिसपर पुरे बिहार की महतो जाती उनपर भरोसा जताती हैं. उपेंद्र कुशवाहा अपनी रालोसपा को जदयू में विलय करने के बाद एक बार फिर से नीतीश से अलग हो गए है, और अलग होते राष्ट्रिय लोक जनता दल का गठन कर लिया हैं.

विलय के बाद एक वक़्त ऐसा लगा की उपेंद्र कुशवाहा अपना जनाधार खो चुके हैं, मगर जब से दूसरी पार्टी का गठन किया हैं तब से वह जनाधार वापस लौट चुकी हैं. अब देखना यह हैं की इस लोकप्रियता को तोड़ने में भाजपा कितना कारगर हो पाती हैं.

क्या है उपेंद्र कुशवाहा के लिए मायने?

 आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी के इस दांव के उपेंद्र कुशवाहा के लिए क्या मायने है?

उपेंद्र कुशवाहा, जिन्होंने जेडीयू से नाता तोड़ कर अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल बनाई है. जेडीयू से नाता टूटने के बाद ही बिहार बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष संजय जायसवाल ने उनसे मुलाक़ात की थी, जिसके बाद ये कयास लग रहे थे कि उनका बीजेपी से गठजोड़ हो सकता है.

वही द भारत के पत्रकार सुनिल प्रियदर्शी कहते है

 ” इस फ़ैसले के बाद अब उपेंद्र कुशवाहा और बीजेपी में बहुत सीमित समझौता हो सकता है. 2014 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पुरानी पार्टी आरएलएसपी को बीजेपी ने तीन सीटें दी थी और पार्टी जीती भी थी. लेकिन सम्राट चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद अब उनकी जगह सीमित हो गई है.”

वहीं उपेंद्र कुशवाहा ने बीबीसी से कहा

 “मैं राजनीति को राजनीति के तौर पर देखता हूँ. किसी जाति के आधार पर नहीं. बाक़ी बीजेपी जिसको प्रदेश अध्यक्ष बनाए, ये उनका अंदरूनी मामला है.”सम्राट चौधरी को अध्यक्ष घोषित होने के बीच ही बीजेपी 2 अप्रैल को रोहतास में सम्राट अशोक जयंती आयोजन की तैयारी कर रही है.

इस आयोजन में गृह मंत्री अमित शाह ख़ुद शिरकत करेंगें. स्पष्ट है कि सम्राट चौधरी की जाति के ज़रिए बिहार बीजेपी लोकसभा और विधानसभा चुनावों को साधने की कोशिश में है.

सम्राट कुशवाहा समाज से…3 बार मंत्री रहे

भारतीय जनता पार्टी ने 2024 का लोकसभा चुनाव देखते हुए विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary ) को पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. सम्राट चौधरी कुशवाहा समाज से आते हैं. बिहार सरकार में तीन बार मंत्री रह चुके हैं. इनके और इनके पिता पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी की बिहार में काफी राजनीतिक पैठ मानी जाती है.

सम्राट चौधरी उस समय विवादों में आए थे, जब लालू यादव की कैबिनेट में सबसे कम उम्र के मंत्री बन गए थे. फिर लंबे बवाल के बाद उन्हें मंत्री पद से हटना पड़ा था. चौधरी उस समय भी सक्रिय भूमिका में थे, जब राजद को जदयू तोड़ रही थी. कुछ विधायक और एमएलसी लेकर सम्राट चौधरी जदयू में शामिल हो गए थे. बाद में जीतन राम मांझी के कार्यकाल में उन्हें नगर विकास मंत्री बनाया गया था. इसके बाद सम्राट चौधरी ने जदयू को अलविदा कहकर भाजपा का दामन थामा था. भाजपा ने भी उन्हें इनाम देते हुए राज्यपाल कोटे से एमएलसी बनाया. पंचायती राज मंत्री बनाया. जब भाजपा सरकार से हटी तो उन्हें विधान परिषद में प्रतिपक्ष का नेता बनाया गया.


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सम्राट चौधरी का दबदबा

सम्राट चौधरी का 2021 में भाजपा कोटे से नीतीश कैबिनेट में शामिल होना भी नीतीश कुमार के लिए बड़ा धक्का है. इससे पहले की भाजपा-जदयू सरकारों में वही चेहरे कैबिनेट में शामिल हुए हैं, जो नीतीश कुमार की पसंद के रहे थे. चाहे वह नेता जदयू का हो या भाजपा का.

2021 के नतीजों ने जदयू को सीटों के मामले में बेहद कमजोर कर दिया है. लिहाजा, नीतीश कुमार उस तरह से मंत्रियों को चुनने में अपना प्रभाव नहीं दिखा पाए और यही वजह रही कि सम्राट चौधरी बिहार सरकार में पंचायती राज मंत्री बन गए. सम्राट, भाजपा में उन गिने-चुने नेताओं में से एक हैं, जो दूसरी पार्टी से आने के बावजूद इतनी जल्दी मंत्री पद तक पहुंच गए। पार्टी में उनकी तरक्की की बड़ी वजह उनका नीतीश विरोधी होना ही है.

नीतीश कुमार की राष्ट्रीय नेता की छवि को तोड़ते रहते हैं सम्राट

सम्राट चौधरी भाजपा की तरफ से जदयू और नीतीश कुमार पर बयानी हमले करते रहते हैं. वे अपने बयानों से नीतीश कुमार की उस राष्ट्रीय नेता की छवि को तोड़ते हैं, जिसे बनाने की कवायद नीतीश कुमार और उनकी पार्टी करती रहती है.

1990 से राजनीति में सक्रिय है

सम्राट चौधरी 1990 से सक्रिय राजनीति में शामिल हुए. 19 मई 1999 को बिहार सरकार में कृषि मंत्री के पद की शपथ ली. 2000 और 2010 में परबत्ता विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और निर्वाचित हुए. साल 2010 में विधानसभा में विपक्षी दल के मुख्य सचेतक बनाए गए थे. 2 जून 2014 को शहरी विकास और आवास विभाग के मंत्री पद की शपथ ली. इसके बाद बीजेपी में शामिल हुए और साल 2018 में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें बिहार प्रदेश का उपाध्यक्ष बनाया. वर्तमान में सम्राट चौधरी विधान परिषद में विरोधी दल के नेता है.

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