सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) की जयंती के बहाने राष्ट्रीय लोक जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा आज अपनी नई राजनीति का आगाज करने जा रहे हैं.
वो राजनीति जिसकी आग वे राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाराजगी मोल ले कर आए हैं. 28 फरवरी 2023 को भितिहरवा से शुरू हुईं इस यात्रा में उन्होंने हमले के लिए जितने तीर इकट्ठे किए हैं, वो मंगलवार को बापू स्मारक हाल में छोड़े जाने हैं. वैसे, इतना तो सच है कि मंगलवार की भीड़ उपेंद्र कुशवाहा की इस नई राजनीति की नीव रखने जा रही है. यह नींव जितनी मजबूत होगी, उतनी इनकी राजनीति की उड़ान ऊंची और लंबी भी होगी.
आपको बता दें कि कुशवाहा ने जेडीयू से हटते ही आनन फानन में विरासत बचाओ यात्रा की नींव सिर्फ नीतीश की राजनीति की हवा निकालने के ध्येय से शुरू कर दी. पश्चिम चंपारण के बापू आश्रम से शुरू इस यात्रा के दौरान महात्मा गांधी, बतख मियां, जेपी, कर्पूरी ठाकुर, सूरज नारायण सिंह, फणीश्वरनाथ रेणु, जुब्बा साहनी, तिलका मांझी, श्रीकृष्ण सिंह, अब्दुल कयूम अंसारी, चंद्रशेखर उर्फ चंदू, दशरथ मांझी, बाबू जगजीवन राम, वीर कुंवर सिंह, शहीद निशान सिंह, डा लाल सिंह त्यागी व गुरुसहाय लाल सहित दर्जनों महापुरुषों के स्मारक पर माल्यार्पण कर नीतीश कुमार के विरुद्ध एक समा बांधने का काम किया.
बिहार की राजनीतिक धुरी
फिलहाल राज्य की राजनीति अभी कुशवाहा की धुरी के इर्द गिर्द घूम रही है. इस बात का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि राज्य के दो बड़े दल यानी भाजपा और जदयू के प्रदेश अध्यक्ष कुशवाहा जाति से आए हैं. हद तो यह हो गई कि उपेंद्र कुशवाहा के जदयू से जाने के बाद बतौर डैमेज कंट्रोल जदयू के केंद्रीय संगठन में पांच और राज्य संगठन में प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा समेत कुल 24 लोगों को जगह दी गई है.
उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार के इस डर की फसल को काटना चाहते हैं. वैसे भी राज्य की राजनीति में पांच कुशवाहों का वर्चस्व है. इस कड़ी में उपेंद्र कुशवाहा सबसे परिपक्व और संघर्ष करने वाले नेता है. दूसरा नाम भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी, तीसरा नाम भगवान सिंह कुशवाहा और चौथा नाम आलोक मेहता और पांचवां नाम नागमणि का आता है.
Emperor Ashoka जयंती समारोह में नंबर गेम अहम
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि आज की भीड़ भाजपा की आगामी रणनीति को मजबूती करेगी. अपनी विरासत बचाओ यात्रा में उपेंद्र कुशवाहा आरोपों से नीतीश कुमार को कितना कठघरे में रख पाए होंगे या जनता कितनी सहमत हुई होगी, कल इस बात पर जितनी मुहर लगेगी, उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति उतनी ही बड़ी होगी. और भाजपा भी इस भीड़ पर नजरें टिकाए रहेगी. सवाल ये भी कि छोटे दलों को साथी बना जंग जीतने की उम्मीद रख रही भाजपा को क्या एक मजबूत साथी मिलेगा?.