Cast Census: बिहार जातीय सर्वे के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए किसी भी तरह की रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इस मामले की विस्तृत सुनवाई की जरूरत है. साथ ही यह भी कहा कि जातीय सर्वे के सारे पहलू पर विचार करना होगा. बीते दो अक्टूबर को जातीय सर्वे जारी होने के बाद अगले दिन ही 3 अक्टूबर को याचिकाकर्ता की तरफ से सुप्रीम कोर्ट से जातीय आंकड़े जारी करने के मामले में हस्तक्षेप की मांग की गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार करते हुए सुनवाई के लिए आज की तारीख तय की थी.
क्या है सरकार का स्टैन्ड
इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजीव खन्ना और एसवीएम भट्टी की बेंच ने की. आपक बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए मना नहीं किया है बल्कि केवल तारीख बढ़ाई हैं. जातिगत सर्वे का मामला दिनों दिन गंभीर होता हुवा दिख रहा हैं, अलग अलग समुदायों में अपनी संख्या को लेकर नीतीश सरकार के खिलाफ रोष है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार अपना स्टैन्ड बदलेगी और सर्वे में सुधार करवाएगी.
बिहार सरकार द्वारा जारी किए जातिगत आंकड़े के मुताबिक बिहार की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ में ईबीसी 37 प्रतिशत है. इसके बाद ओबीसी 27.13 फीसदी, 19 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 17.70 फीसदी मुस्लिम समुदायर है. सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि ओबीसी समूह में शामिल यादव समुदाय 14 प्रतिशत से कुछ अधिक जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़ा समुदाय है.
सर्वेक्षण में क्या कहा गया
सर्वेक्षण (Cast Census) में यह भी कहा गया था कि ओबीसी समूह में शामिल यादव समुदाय प्रदेश की कुल आबादी का 14.27 प्रतिशत है. राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. राज्य में जनसंख्या के मामले में यह समुदाय सबसे अधिक है. बिहार सरकार ने राज्य में जाति आधारित गणना का आदेश पिछले साल तब दिया गया था.
जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह आम जनगणना के हिस्से के रूप अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य जातियों की गणना नहीं कर पाएगी. मुख्यमंत्री ने कहा था कि बिहार में कराई गई जाति आधारित गणना को लेकर शीघ्र ही बिहार विधानसभा के उन्हीं 9 दलों की बैठक बुलाई जाएगी तथा जाति आधारित गणना के परिणामों से उन्हें अवगत कराया जाएगा.