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Mission Raniganj Review: कोयले की खदान में फसे 65 मजदूरों की जान बचाने वाले एक जांबाज माइनिंग इंजीनियर की कहानी

Mission Raniganj Review : इन बीते सालों में अक्षय कुमार रियल लाइफ हीरोज की कहानियों को दर्शाने में माहिर हो चुके हैं. उनकी पैडमैन, एयरलिफ्ट, रुस्तम, गोल्ड, केसरी, सम्राट पृथ्वीराज ऐसी कहानियों के उदाहरण हैं. निर्देशक टीनू देसाई की ताजा-तरीन फिल्म मिशन रानीगंज भी इसी श्रृंखला को आगे बढ़ाती है. यह कहानी है वेस्ट बंगाल के जांबाज माइनिंग इंजीनियर जसवंत गिल की, जिन्होंने 1989 में अपनी जान की बाजी लगाकर कोयले की खदान में फंसे माइनिंग मजदूरों की जान बचाई थी.

कहानी की शुरुआत होती है

नवंबर 1989 से, जब सुबह-सुबह पश्चिम बंगाल के रानीगंज की महावीर कोयला खदान में 65 मजदूरों के फंसने की खबर आती है. अपने नियमित काम-काज के तहत लगभग ढाई सौ मजदूर खदान में गए थे, मगर खदान में होने वाले विस्फोट के कारण वहां बाढ़ आ जाती है, 179 मजदूर किसी तरह अपनी जान बचाकर खदान से निकलने में कामयाब रहते हैं, जबकि 65 मजदूर वहीं फंसे रह जाते हैं. खदान में तेजी से भरते पानी के कारण छह मजदूर अपनी जान गंवा बैठते हैं.

पूरे इलाके में मजदूरों के परिवारों में हाहाकार मच जाता है. स्थिति जब विकट रूप धारण कर लेती है, तब कहानी में एंट्री होती है, माइनिंग इंजीनियर जसवंत गिल (अक्षय कुमार) की. जसवंत गिल की निर्दोष (परिणीति चोपड़ा) से शादी हो चुकी है, वो पिता बनने वाला है, मगर यहां वो अपने फर्ज को अंजाम देने आया है. खदान में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने की सारी तरकीबें नाकाम होती नजर आती हैं, तब जसवंत गिल एक युक्ति बताता है. ऐसा तरीका जो मजदूरों के रेस्क्यू के लिए पहली बार इस्तेमाल होगा.

नीचे खदान में पानी का स्तर बढ़ने लगता है और जहरीली गैस…

वह जमीन में एक कुआं खोदकर विशेष रूप से तैयार किए गए कैप्सूल के जरिए रेस्क्यू प्लान बनाता है. तीन दिन तक चलने वाले इस मिशन में उसे कारोबारी रंजिश के तहत लोकल पॉलिटिक्स का शिकार होना पड़ता है. उसके इस रेस्क्यू ऑपरेशन को नाकाम करने की हरचंद कोशिश की जाती है. नीचे खदान में पानी का स्तर बढ़ने लगता है और जहरीली गैस बनने लगती है.

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मान लिया जाता है कि मजदूरों की समाधि उसी खदान में तय है, मगर गिल अपनी जान को जोखिम में डालकर कैप्सूल से नीचे खदान में जाता है और देश के सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देता है. वह मजदूरों को बचाकर सच्चा नायक साबित होता है. विपरीत हालत में मजदूरों की जान बचाने के एवज में 1991 में जसवंत गिल को इसी बहादुरी के लिए राष्ट्रपति की ओर से सर्वोत्तम जीवन रक्षा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

फिल्म का पहला हिस्सा थ्रिलर स्पेस में है

रुस्तम जैसी रियल लाइफ स्टोरी पर फिल्म देने के बाद निर्देशक टीनू सुरेश देसाई मिशन रानी गंज में उसी कलेवर में नजर आते हैं फिल्म का पहला हिस्सा थ्रिलर स्पेस में है, जहां आपको हर पल ये लगता है कि अब आगे क्या होगा, जबकि मिशन रानीगंज (Mission Raniganj Review) के मध्यांतर के बाद कहानी मानवीय संवेदनाओं के इर्द गिर्द घूमने लगती है. फिल्म का जज्बाती पहलू मजबूत है, मगर तकनीकी रूप से फिल्म कुछ जगहों पर कमजोर नजर आती है. बाढ़ वाले दृश्यों में वीएफएक्स हालात की भयावहता को दर्शाने में कमतर साबित होते हैं.

कोयले की खदान का सेट भी प्रभावकारी नहीं है. इस तरह की प्रेरणादायक फिल्मों में थोड़ी डायलॉगबाजी होती, तो मजा आ जाता. निर्देशक टीनू देसाई यदि जसवंत गिल की पृष्ठभूमि पर भी थोड़ा प्रकाश डालते, तो अच्छा होता. संगीत पक्ष की बात करें, तो कुमार विश्वास के लिखे और अर्को का गाया गाना असरकारक है. असीम मिश्रा की सिनेमेटोग्राफी और संदीप शिरोडकर द्वारा दिया गया बैकग्राउंड स्कोर ठीक-ठाक है.

परिणीति चोपड़ा शुरूआती फ्रेम्स में नजर आकर गायब हो जाती हैं

अक्षय कुमार ने जसवंत गिल के रूप में अपने चिर-परिचित अंदाज में नजर आते हैं. अपनी पिछली फिल्मों की तरह अपने किरदार को मजबूत बनाने के लिए वे वे कोई भी गेटअप अपनाने को राजी रहते हैं. यहां जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती जाती है, उनका सरदार वाला किरदार विश्वास और सहानुभूति अर्जित करने में सफल रहता है, मगर हां उनकी नायिका परिणीति चोपड़ा शुरूआती फ्रेम्स में नजर आकर गायब हो जाती हैं. परिणीति को स्क्रीन स्पेस नहीं मिला है.

मगर फिल्म (Mission Raniganj Review) की सहयोगी कास्ट मजबूत है. खासतौर से उज्ज्वल के रूप में कुमुद मिश्रा, पाशु के किरदार में जमील खान, भोला के किरदार में रवि किशन और जुगाड़ वाले तकनीशियन के रूप में पवन मल्होत्रा ने फिल्म में यादगार काम किया है. बचन पचेरा, सुधीर पांडे, मुकेश भट्ट और ओंकार दास मानिकपुरी जैसे परिचित चेहरों की मौजूदगी भी फिल्म के तनाव और इमोशन को बनाए रखने में सहायक साबित होते हैं. दिब्येंदु भट्टाचार्य, राजेश शर्मा और शिशिर शर्मा अपनी छोटी-छोटी भूमिकाओं में असर छोड़ते हैं.

फिल्म की कुछ अहम बाते

  • फिल्म- मिशन रानीगंज
  • निर्देशक-टीनू सुरेश देसाई
  • अवधि- दो घंटे 18 मिनट
  • जॉनर-बायोग्राफी
  • रेटिंग- तीन स्टार

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