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Pushpa 2 The Rule Review : पुष्पा 2 के रिलीज होते ही शुरू हो गई पुष्पा 3 की चर्चा, कहानी के रिवर्स स्विंग ने कर दिया खेल 

किसी सुपरहिट फिल्म का सीक्वल बनाना आसान नहीं है. खासतौर से तब जब सीक्वल को बड़ा बनाने के लिए इसके कलाकारों का अहं इतना बड़ा हो जाए कि वे आपस में ही भिड़ जाएं. तेलुगु सिनेमा के दिग्गज निर्देशक सुकुमार और निर्माता अल्लू अरविंद के बेटे अल्लू अर्जुन के अहं का फिल्म ‘पुष्पा 2’ (Pushpa 2) की मेकिंग के दौरान जो टकराव हुआ, वह तो तारीखी रहेगा ही लेकिन इस फिल्म के अंतिम नतीजों के आगे सब माफ है.

इस फिल्म का मामला मलयालम फिल्म अभिनेता फहद फासिल की तारीखों के चलते भी लटका और इस बार ‘पुष्पा 2 द रूल’ (Pushpa 2) की कहानी ‘पुष्पा 3 द रैम्पेज’ तक ले जाने से पहले इसीलिए सुकुमार ने ऐसे सारे कील कांटे दुरुस्त कर लिए हैं. ‘तेरी झलक अशर्फी’ और ‘ऊ अंटावा’ जैसे गाने बनाने वाले रॉकस्टार देवी श्री प्रसाद भले इस बार मूड में नजर नहीं आए, लेकिन अल्लू अर्जुन ने चाचा बनकर मसाला फिल्में पसंद करने वाली पब्लिक का दिल जीत लिया है.

श्रेयस तलपदे की आवाज का कमाल

रिव्यू हमलोग शुरू से शुरू करते हैं और बात करते हैं उस पुष्पराज की जिसने पिछली ही फिल्म में नारा लगा दिया था कि ‘मैं झुकेगा नहीं’. अल्लू अर्जुन खुद हिंदी में इसे डब करते तो पता नहीं कैसा करते लेकिन श्रेयस तलपदे ने फिर एक बार पुष्पा राज के किरदार को परदे पर खिला दिया है. फ्लावर से वाइल्ड फायर बनने की कोशिश करते पुष्पा राज की कहानी यहां थोड़ा पीछे से शुरू होती है.

छलांग लगाने के लिए वह पंजे भी सिकोड़ता नजर आता है लेकिन बचपन का कोमल पुष्पा राज (Pushpa 2) बड़ा होकर गंधर्व पुष्पा राज कैसे बन गया, इसकी कहानी जबर्दस्त है. श्रीमती पुष्पा राज यानी कि श्रीवल्ली का नैन मटकाना वैसा ही जारी है. वह खुद को लेडी अर्जुन समझती सी दिखती है. उसका रास्ता काटने को इस बार सुकुमार श्रीलीला को लेकर आए, लेकिन समांथा जैसा न तो नमक उसमें हैं और न ही बिल्ली जैसी चपलता. मामला किसिक में कसक भरकर लाल चंदन हो गया.


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कहानी के रिवर्स स्विंग ने कर दिया खेल

फिल्म पुष्पा द रूल यानी पुष्पा 2 (Pushpa 2) की कहानी को जिस तरह सुकुमार पिछली बार विदेश से समंदर के रास्ते रेखा चित्रों के जरिये लाल चंदन के जंगलों तक लाए थे, वैसा ही रिवर्स स्विंग इस बार की कहानी में भी है. जापान के किसी बंदरगाह से शुरू होने वाली ये फिल्म चूंकि तीन घंटे के करीब लंबी है लिहाजा फिल्म की कहानी का विस्तार काफी लंबा है. इस विस्तार में अपने किरदारो से सुकुमार को जिस मदद की उम्मीद रही होगी, वो उन्हें मिली है. जगदीश भंडारी, जगपति बाबू, राव रमेश और ब्रह्माजी सब अपने अपने किरदारों में मुस्तैद दिखते हैं.

कहानी पिछली बार श्रीवल्ली का दिल जीतने की थी और इस बार कहानी है अपनी मां को अपने ही घर में वो सम्मान दिलाने की जिसके लिए पुष्पराज बचपन से ही त्रास झेलता रहा. इस बार की चौपड़ में पुष्पा और भंवर के बीच बिछी चौपड़ पर जिस तनाव के बिछने की उम्मीद फिल्म के दर्शक लगाए थे, वह भले उतनी न दिखी हो, लेकिन एक बार परिवार का भंवर सामने आने के बाद फिल्म पटरी पर आती दिखने लगती है.

सीक्वल में फुस्स हो गया फाफा

अल्लू अर्जुन को प्रभुजी मानकर चंदन घिसते रहे लेखक-निर्देशक सुकुमार को लगता रहा है कि फिल्म ‘पुष्पा वन’ की सफलता का श्रेय उन्हें उतना नहीं मिला, जितना अल्लू और रश्मिका को मिला. रश्मिका तो सीधे हिंदी सिनेमा के हीरो नंबर वन रणबीर कपूर की हीरोइन बनने में कामयाब रहीं. अल्लू अर्जुन की कहानी इस बार बचपन से लेकर बुजुर्गियत की दहलीज पर आ खड़े हुए पुष्प राज की कहानी है और इस बार वाकई में उनके लिए मामला आसान नहीं है.

राउडी बॉय पुष्पा और लीडर पुष्पा (Pushpa 2) के बीच की जो लकीर इस कहानी में फहद फासिल के आने से आई है, उसे पार करने में इस बार ये दोनों जियाले कमाल कर गए हैं. गब्बर जैसा ताप लाने की कोशिश यहां प्रताप रेड्डी भी भंवर सिंह के साथ मिलकर करता है. लेकिन, ठाकुर और गब्बर के बीच डोलते फहद फासिल के किरदार ने उन्हें इस बार ज्यादा चमकने का मौका नहीं दिया. उनसे बढ़िया काम तो रश्मिका मंदाना ने सिर्फ एक सीन में अपने जेठ की धमक निकालकर कर दिया है.

श्रीवल्ली के आगे फीकी रही श्रीलीला 

फिल्म को देखने दो तरह के दर्शक और सिनेमाहॉल में दिखे. एक थे श्रीवल्ली, गीतांजलि और आफरीन यानी रश्मिका मंदाना के प्रशंसक. रश्मिका के भीतर एक गुस्सा है. ये गुस्सा उनके अभिनय में किरदार की जरूरत के हिसाब से मौका मिलते ही बह निकलता है, लेकिन इस गुस्से को प्रकट करने के नए तरीके उन्हें सीखने होंगे. हां, फीलिंग्स वाला पूरा सीक्वेंस उनका दमदार है. लेकिन उनके किरदार में जात्रा वाले दृश्य से पहले ज्यादा गहराई नहीं दिखती. जात्रा वाला दृश्य, उसके बाद लगातार आने वाले दो गाने और उसके बाद काली के रूप में अल्लू अर्जुन का तांडव नृत्य फिल्म का सबसे सफल सीक्वेंस है. और, इसके बाद भतीजी को बचाने निकले चाचा का क्लाइमेक्स वाला एक्शन भी तालियां बटोर ले गया.

दर्शकों को श्रीलीला में सामंथा जैसी किसिक पूरी होने की कसक जगी थी, लेकिन उनका ‘किसिक’ सॉन्ग मामला ज्यादा जमा नहीं. संगीतकार देवी श्री प्रसाद यहां ओवर कॉन्फिडेंस का शिकार साफ नजर आते हैं. उनकी हिंदी पर कमजोर पकड़ भी इस गाने में उजागर हो गई है. फिल्म बनाने वालों को भी डीएसपी की ये कमजोरी रिलीज से पहले ही समझ आ गई. इसीलिए फिल्म के बैकग्राउंड स्कोर में एस थमन और सैम सी एस की भी मदद ली गई है.

सिनेमैटोग्राफी में अव्वल नंबर फिल्म

फिल्म की तकनीकी टीम में जिस एक शख्स की तारीफ करने का मन बार बार होता है वह पोलैंड के मूल निवासी सिनेमैटोग्राफर कुबा ब्रोजेक मिरोस्लॉव. चंदन के जंगलों की इंसानियत को शहरों के कंक्रीट दिलों की वहशियत के विरोधाभास के साथ सजाने में उन्होंने सौ में सौ नंबर पाए हैं. सुकुमार को और किसी भी विभाग से इस बार ऐसा तगड़ा साथ फिल्म ‘पुष्पा 2’ में नहीं मिला. फिल्म का प्रोडक्शन डिजाइन काफी रंगीन है.

प्रीतशील सिंह ने अल्लू अर्जुन के गेटअप पर काबिले तारीफ काम किया है. संपादन करते समय कौन सा रंग फिल्म में रखें और कौन सा छोड़ें, इसी संतुलन को नवीन नूली अंत तक अटके रहे. साउथ सिनेमा में इस साल ‘हनुमान’ ने जिस होशियारी से सिनेमा को साधा था, उसे कुछ हद तक नाग अश्विन ‘कल्कि 2898’ में भी साधे रहे, और, अब साउथ सिनेमा की मेगा बजट फिल्मों के कारोबार को साधने आ चुका है, ‘पुष्पा 2’.

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