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Monsoon Session: ‘इंडिया’ का अविश्वास प्रस्ताव मोदी सरकार को कितना अस्थिर कर सकेगा? विपक्षी दल कितना मजबूत है?

द भारत: Monsoon Session: संसद के मानसून सत्र में मणिपुर हिंसा को लेकर लगातार गतिरोध बना हुआ है. विपक्ष इसे लेकर अड़ा हुआ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर के मुद्दे पर सदन में बोलें. इस मांग को लेकर वो लगातार सदन का बहिष्कार करता आ रहा है.

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि वो संसद में इस पर जवाब देने के लिए तैयार हैं, लेकिन विपक्ष ने अमित शाह के इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस थमाया. बुधवार (26 जुलाई) को विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस यानी इंडिया की तरफ़ से सदन के नियम 198 के तहत अविश्वास प्रस्ताव लाया गया.

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार तो कर लिया लेकिन सदन में इस पर चर्चा कब होगी, ये तय नहीं किया. लोकसभा के नियम के अनुसार नोटिस स्वीकार किए जाने के 10 दिनों के अंदर इस पर चर्चा की तारीख़ तय की जाती है. इस प्रस्ताव का नोटिस दिए आज छह दिन हो गए हैं लिहाजा कयास लगाए जा रहे हैं कि इसी हफ़्ते इस पर चर्चा होगी.

किसने क्या कहा?

बात सबसे पहले इस अविश्वास प्रस्ताव पर हो रहे बयानों की: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “क्यों प्रधानमंत्री मणिपुर पर सदन में नहीं बोलते? मोदी साहब क्यों यहां नहीं आते और बात नहीं करते हैं? क्यों अपनी बात को यहां नहीं रखते हैं? बाहर तो बोलते हैं ईस्ट इंडिया कंपनी के बारे में, अरे मणिपुर के बारे में बोले ना.”

राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने कहा, “अविश्वास प्रस्ताव में आंकड़े हमारे पक्ष में नहीं हैं, लेकिन सवाल आंकड़ों का नहीं है. लोकतंत्र में जब ऐसी परिस्थिति पैदा हो जाए कि पौने तीन महीने प्रधानमंत्री चुप्पी साधे रहें तो शायद अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से प्रधानमंत्री जी को सदन में अपनी बात तो रखनी ही होगी.”

“मणिपुर के लोगों को एक संदेश जाएगा कि बाकी किसी इंस्ट्रूमेंट से प्रधानमंत्री जी सामने नहीं आए अतः विपक्ष को एक्स्ट्रीम स्टेप लेना पड़ा ताकि मणिपुर के लोगों को प्रधानमंत्री की ओर से संवेदना का एक संदेश जाए.”

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, “मणिपुर पर प्रधानमंत्री को बोलना चाहिए. पूरा विपक्ष एकजुट हो कर उनसे सदन में बयान देने को कह रहा है लेकिन वो ऐसा नहीं कर रहे इसलिए यह अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है.”

आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा बोले, “बहुत बार संसदीय औजारों का इस्तेमाल इसलिए भी किया जाता है ताकि सरकार को सदन के अंदर देश के ज्वलंत मुद्दों पर बयान देने के लिए मजबूर किया जाए. अभी मणिपुर सबसे ज्वलंत मुद्दा है. इस प्रस्ताव में किसकी हार होगी या जीत यह सोचने का वक़्त नहीं है. सरकार के मुखिया सदन के भीतर आ कर जवाब दें.”

क्या है लोकसभा में संख्या बल का गणित?

जहां तक लोकसभा में संख्या बल की बात है तो यह विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को भी बखूबी पता है कि लोकसभा में चर्चा के बाद जब वोट डाले जाएंगे तो उसका अविश्वास प्रस्ताव नहीं टिकेगा क्योंकि 545 सीटों वाली लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा 272 है और अकेले एनडीए के सबसे प्रमुख घटक दल बीजेपी के पास ही 300 से अधिक सीटें हैं. वहीं कांग्रेस समेत विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के पास क़रीब 141 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है.

केसीआर की बीआरएस, वाईएस जगन रेड्डी की वाईएसआरसीपी और नवीन पटनायक की बीजेडी जैसी तटस्थ पार्टियों की संयुक्त ताकत 41 है. बाकी सीटें अन्य दलों के साथ-साथ निर्दलीय सदस्यों के बीच विभाजित हैं.

क्या पीएम को अविश्वास प्रस्ताव पर बोलना ही पड़ेगा?

इस पर वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं, “अविश्वास प्रस्ताव का मतलब यह है कि यह संसद प्रधानमंत्री के कार्य पर विश्वास नहीं करती है. इस बार अविश्वास प्रस्ताव लाने का अहम कारण यह रहा कि विपक्ष चाहता था कि प्रधानमंत्री ही मणिपुर पर सदन में बोलें.”

वे कहते हैं, “विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव को एक हथियार के तरह इस्तेमाल किया है, लेकिन नियम ये कहीं नहीं कहते कि प्रधानमंत्री को अविश्वास प्रस्ताव पर बोलना ही पड़ेगा. हो सकता है कि वो किसी को अपना प्रतिनिधि बना कर कह सकते हैं कि सरकार की तरफ़ से जवाब वो देंगे. लेकिन इस बात की उम्मीद बहुत कम है. क्योंकि ऐसे में माना जाएगा कि प्रधानमंत्री संसद से बच रहे हैं, संसद के सामने उत्तरदायी नहीं बनना चाहते, संसद को उत्तर नहीं देना चाहते.”

वे कहते हैं, “मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री के पास बहुत सक्षम जवाब है. बार बार सत्ता पक्ष या उनके प्रवक्ता कह रहे हैं ड्रग माफ़िया पर कार्रवाई की वजह से ये शुरू हुआ है. जातीय हिंसा जो हो रही है उसकी एक बड़ी वजह म्यांमार से होने वाली घुसपैठ है. घुसपैठियों को पहचान करने की कोशिश की जा रही है.”


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कौन दल किसके साथ?

इस बीच कुछ दलों ने अपना रुख़ स्पष्ट करना शुरू कर दिया है. लोकसभा में 9 सदस्यों वाली के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने 26 जुलाई को बताया था कि उसने भी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस सौंपा है. बीआरएस बेंगलुरु में हुई विपक्षी दलों की उस बैठक का हिस्सा नहीं थी जहां इस गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ तय किया गया था.

वहीं 22 लोकसभा सांसदों वाली वाईएसआर कांग्रेस ने संसद में मोदी सरकार का समर्थन करने का फ़ैसला किया है. पार्टी ने तय किया है कि वो लोकसभा में विपक्ष के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ और सरकार के पक्ष में वोट डालेगी. वाईएसआर कांग्रेस संसदीय के प्रमुख विजयसाई रेड्डी ने कहा, “इस वक़्त मिलकर काम करने की ज़रूरत है. वाईएसआर कांग्रेस सरकार का समर्थन करेगी और अविश्वास प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट देगी.”

12 सांसदों वाली बीजू जनता दल ने अविश्वास प्रस्ताव को लेकर अपना रुख़ अभी स्पष्ट नहीं किया है. ऐसा ही बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के साथ है जो ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा भी नहीं हैं.

अविश्वास प्रस्ताव का मक़सद

तो जब संख्या बल विपक्ष के साथ नहीं है तो वो अविश्वास प्रस्ताव क्यों लेकर आई है. इस पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, “यह विपक्ष की रणनीति लगती है कि इस प्रस्ताव के ज़रिए पीएम मोदी को मणिपुर पर संसद में बोलना पड़े. प्रधानमंत्री निश्चित रूप से अपने 9 सालों के कार्यकाल का बखान करेंगे लेकिन बात मणिपुर की ज़रूर आएगी.”

वे कहती हैं, “मणिपुर का मसला देश में इतना तूल पकड़ रहा है और वो 10 वाक्य भी बोलते तो इस तरह के सभी वार कुंद पड़ जाते लेकिन राजनीतिक रूप से भी ये समझ में नहीं आता कि वो कुछ क्यों नहीं बोल रहे हैं.”

नीरजा चौधरी कहती हैं, “ऐसा लगता है कि नया विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ राजनीतिक लामबंदी के ज़रिए पूर्वोत्तर और महिलाओं के चुनावी क्षेत्रों को संदेश देने की कोशिश कर रहा है. पूर्वोत्तर राज्यों की तरफ से यह मैसेज आ रहा है कि बाकी देश को हमारी परवाह नहीं है और ये बहुत ख़तरनाक है क्योंकि वहां दशकों तक उथल पुथल रहा है. हाल के दिनों में ही यहां राजनीतिक स्थिरता आई है. वहां के लोगों के बीच असंतुष्टि का आना देश की राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी असर डाल सकता है.”

“अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए विपक्ष जनता को यह बताती है कि सरकार ठीक से काम नहीं कर रही. आज अविश्वास प्रस्ताव को लाइव दिखाया जाता है. तो जनता विपक्ष और सरकार को लाइव देखती है कि वो क्या बोल रहे हैं. विपक्ष के पास संख्या बल नहीं है. अगर होता तो आप सरकार का कोई भी विधेयक गिरा देते उससे ही ये ज़ाहिर हो जाता.”

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