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अग्निपथ योजना: इस योजना में भर्ती होने वाले युवाओ का भविष्य क्या होगा ? जानिए विस्तार से

द भारत:- अग्निपथ योजना के आलोचकों का कहना है कि सेना में ट्रेनिंग लिया हुआ 21 साल का बेरोज़गार नौजवान ग़लत रास्ते पर जाकर, अपनी ट्रेनिंग का ग़लत इस्तेमाल करके समाज के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है. रिटायर्ड मेजर जनरल शेओनान सिंह पूछते हैं कि 21 साल का दसवीं या बारहवीं पास बेरोज़गार नौजवान रोज़गार के लिए कहां जाएगा?

वो कहते हैं, “वो अगर पुलिस में भर्ती के लिए जाता है तो उससे कहा जाएगा कि वहाँ तो पहले से ही बीए पास नौजवान हैं, इसलिए वो लाइन में सबसे पीछे खड़ा हो जाए. पढ़ाई की वजह से उसके प्रमोशन पर असर पड़ेगा.”

उनकी राय है कि युवाओं को 11 साल के लिए सेना में शामिल किया जाए ताकि वो कम से कम आठ साल तक अपनी सेवाएं दे सकें और आठ साल बाद उन्हें आधी पेंशन देकर जाने दिया जाए. रिटायर्ड मेजर जनरल एसबी अस्थाना का मानना है कि 21 साल के ग्रैजुएशन वाले युवा और अग्निवीर नौकरी ढूंढते वक़्त बहुत अलग स्तर पर नहीं होंगे क्योंकि अग्निवीर के हुनर उसे दूसरों से अलग बनाएंगे.

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुडा के मुताबिक़ इस सरकारी योजना के ज़मीन पर असर को देखते हुए इसके भविष्य पर फ़ैसला किया जा सकता है, खासकर तब जब सरकार और मिलिट्री लीडरशिप ने इस योजना पर महीनों काम किया है. वो कहते हैं कि इस योजना का बजट पर क्या और कैसा असर होता है, ये जानने समझने में आठ से दस साल लगेंगे, और अगर पैसा बचता है तो उसे सैन्य आधुनिकीकरण में खर्च किया जा सकता है.

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुडा कहते हैं, “इस योजना के तहत अगले चार सालों में 1.86 लाख सैनिकों की भर्ती होगी. ये सैन्य शक्ति का 10 प्रतिशत होगा. ये चार साल हमें ये समझने का मौक़ा देंगे कि ये योजना कैसी चल रही है. क्या युवा इससे आकर्षित हो रहे हैं या नहीं, क्या वो यूनिट से जुड़ रहे हैं. उनकी मनोदशा कैसी है और सरकार क्या क़दम ले सकती है.”

बीबीसी की रिपोर्ट: 
इसराइल से तुलना:
रिटायर्ड मेजर जनरल एसबी अस्थाना ने बातचीत में कहा कि ऐसा नहीं है मोदी सरकार की अग्निपथ योजना का मॉडल कहीं और ट्राई नहीं किया गया. उन्होंने इसराइल का उदाहरण दिया.

इसराइल में क्या स्थिति है, यही जानने के लिए मैंने यरुशलम में पत्रकार हरेंद्र मिश्रा से संपर्क किया. हरेंद्र मिश्रा के मुताबिक़ वहाँ बेरोज़गारी की समस्या नहीं है और ऐसा नहीं कि अनिवार्य मिलिट्री ट्रेनिंग के बाद युवा उस ट्रेनिंग का ग़लत इस्तेमाल करते हैं.

वो बताते हैं कि वहाँ हर युवा को 18 साल में अनिवार्य ट्रेनिंग करनी पड़ती है और उस ट्रेनिंग के लिए उन्हें कोई तन्ख्वाह नहीं मिलती क्योंकि इसे देश सेवा के भाव से देखा जाता है ना कि नौकरी के तौर पर. महिलाओं के लिए ये ट्रेनिंग दो साल की होती है जबकि पुरुषों के चार साल की.

इस ट्रेनिंग के दौरान मात्र जेब खर्च दिया जाता है. चूंकि ये ट्रेनिंग सभी को करनी पड़ती है तो ऐसा नहीं होता कि ट्रेनिंग के बाद पढ़ाई में कोई आगे निकल गया हो.

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