विशाल कुशवाहा की रिपोर्ट
द भारत / रक्सौल : — जब समय खराब हो तो अपने भी साथ छोड़ जाते हैं। कुछ ऐसा ही हालात कोरोना वायरस के चलते नेपाल में फंसे भारतीयों के साथ हो रहा है, जो फिल्हाल न घर के हैं और न घाट के। उनकी स्थिति ‘तोको ना मोको चूल्हा में झोंको’ वाली हो गयी है। उनकी व्यथा सुन आँखों में आँसू और द्रवित हो उठता है। जब लोगों ने कहा कि 2 दिनों से भूखे और प्यासे हैं। वो नेपाल में जहाँ फंसे हैं, वहाँ से आने के लिए 5 सौ रुपये की जगह 14 सौ रुपये चुका कर तो भारतीय बॉर्डर पर आ गये, परन्तु अब तो मजबूरी बस न उन्हें भारत में प्रवेश करने दिया जा रहा है और न नेपाल उन्हें रखने को तैयार है।
पूरी कहानी बता दें कि नेपाल की राजधानी काठमांडू सहित विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले लगभग दो हजार से अधिक भारतीय कामगार रविवार को नेपाल के प्रशासन ने भारतीय बॉर्डर पर जाने हेतु परमिट जारी किया, जो उसे लेकर अपने परिवार के साथ बस भाड़ा कर रात्री में वीरगंज, नेपाल पहुँचे। जहाँ से बिना जांच के ही सबको वीरगंज नेपाल के पुलिस प्रशासन द्वारा रक्सौल आने का परमिट दे दिया गया। जिसके बाद रविवार को रात्री 12 बजे भारत- नेपाल मैत्री पुल पर पहुँचे, जहाँ पहले से ही तैनात भारत के एसएसबी और आव्रजन अधिकारियों ने उनके प्रवेश पर रोक लगा दिया। जिसके बाद स्थानीय प्रशासन से लोगों ने अपने- अपने घर जाने देने का गुहार लगाया। लेकिन भारत सरकार द्वारा नेपाल के रास्ते आनेवाले भारतीय व नेपाली नागरिकों के प्रवेश पर रोक लगाने के कारण स्थानीय प्रसाशन द्वारा उन्हें प्रवेश का इजाजत नही दिया गया।
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